शनिवार, 10 नवंबर 2012

सम्यग्दृष्टि का विराग


जिन्हें बोधि प्राप्त हो जाती है, उनको तो संसार खटकता है, क्योंकि उनमें निर्ममत्व प्रकट हो जाता है। इसलिए वे मुक्तिमार्ग की आराधना सुन्दर रूप से कर सकते हैं। ऐसे जीव संसार में हों तो भी मुक्तिमार्ग की आराधना करने वाले होते हैं। सम्यग्दृष्टि जीव यदि संसार में हों तो उनके स्त्री, बच्चे, घरबार आदि होते हैं न? ये होते हैं, परन्तु विघ्नरूप नहीं होते। यदि वे विघ्नरूप होते हैं तो सम्यग्दृष्टि जीव उनकी परवाह नहीं करते। आप अब घर जाकर सबको यही कहेंगे न कि यह बोधि ही बडी से बडी सम्पत्ति है। जिसे बोधि की संप्राप्ति हो गई है और इस कारण जिसमें निर्ममभाव पैदा हो गया है, उसके जैसा इस जगत में कोई अन्य सुखी नहीं है।

सम्यग्दृष्टि आत्मा ने सम्यग्दर्शन पाने के पहले आयुष्य का बंध कर लिया हो और इस कारण वह नरक में भी हो, तो वहां उसे जितना पाप खटकता है, उतना दुःख नहीं खटकता। शरीरादि के दुःख की अपेक्षा से मानसिक दुःख अधिक होता है। शरीरादि के दुःख के लिए तो वह समझता है कि मेरे किए हुए पाप का परिणाम मुझे भोगना ही पडेगा, इसमें क्या नई बात है। परन्तु मन में उसको इस बात का दुःख होता है कि मैंने ऐसे-ऐसे दुष्कर्म किए, मैं ऐसा पापी।सम्यग्दृष्टि जीव देवलोक में पैदा हुआ हो और वहां स्वर्ग में सम्पत्ति बहुत हो, तब उसके मन में क्या भाव होते हैं?

इसमें से कुछ भी मेरा नहीं है। ऐसी विपुल सुख-सम्पत्ति के बीच भी उसका विराग जीता जागता रहता है। क्योंकि, मोक्षमार्ग की आराधना ही उसका लक्ष्य है। संसार की सुख-सम्पत्ति का उसके मन में कोई महत्त्व नहीं होता। मोक्ष का ही उसकी दृष्टि में सच्चा महत्त्व होता है। क्योंकि वह सम्यग्दृष्टि है। आप सम्यग्दृष्टि हैं या आपको सम्यग्दृष्टि बनना है? सुखी होना या दुःखी होना अपने ही हाथ में है, ऐसा लगता है न? सुखी होने के लिए सम्यग्दृष्टि बनना आवश्यक है, ऐसा अनुभव होता है न?

जिसे सम्यग्दर्शन गुण का आस्वाद आता है, उसकी सांसारिक सुख की इच्छा का उपादेय रूप में नाश हो जाता है और एक मात्र मुक्ति मार्ग की आराधना की इच्छा ही उसके हृदय पर शासन करती है। उसकी सब इच्छाएं मोक्ष साधना के अनुकूल ही होती है, इसलिए वह एकांत में बैठा हो तो भी ऐसी भावना में ही रमण करता है कि मुझे मिला हुआ यह धर्म जाता हो और चक्रवर्तित्व भी मिलता हो तो वह मुझे नहीं चाहिए। प्रतिदिन प्रातःकाल उठकर भावना भाते हुए आप यह बोलते हैं? राजा भी प्रातःकाल उठकर ऐसी भावना भाने वाला होता है और रंक भी। बोधि के कारण बोधिलाभ की यह कैसी अद्भुत खुमारी (मस्ती) है।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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