धर्म को जानने की इच्छा हो तो
धर्म को जानने के लिए किसके पास जाने का मन होता है? साधुओं के पास ही जाने का मन होता है न?
एकांत धर्ममय जीवन
जीने वाले तो साधु ही होते हैं न? धर्म ही जानना हो तो धर्मजीवी
के पास जाना पडता है। इसलिए धर्म को जानने की इच्छा वाला बना हुआ जीव, जो कोई उसे ऐसे लगते हैं कि ये जीवन में एकांत धर्म का ही
सेवन करने वाले हैं, उन्हें ढूंढ-ढूंढकर उनके पास
जाता है और वहां धर्म के विषय में नया-नया जानने का पुरुषार्थ करता है।
जिस जीव की संसार के सुख पर
से दृष्टि उठी और आत्मा के कल्याण के लिए जिसे धर्म को जानने का मन हुआ, वह जीव इतना तो जानता है कि ‘साधुओं के सिवाय दुनिया में और कहीं से भी वह धर्म जानने को नहीं मिल सकता, जो मैं जानना चाहता हूं।’
स्कूल और कॉलेजों में तो यह
शिक्षण मिलता ही नहीं। संसार के सुख का रस जहां छलकता हो, वहां से सच्चे धर्म की शिक्षा मिल सकती है क्या? सच्चा धर्म तो प्रायः साधु ही समझाते हैं न? धर्म का सच्चा स्वाद जिनको आया है, वे ही सच्चे धर्म की समझ करा सकते हैं न? धर्म का सच्चा स्वाद जैसा छठे गुणस्थानवर्ती और आगे के
गुणस्थान वाले साधु को आता है, वैसा स्वाद किसी अन्य को आता
है क्या? सभा में इंद्रादि देव बैठे हों और चक्रवर्ती आदि
राजा बैठे हों तो भी संसार को और संसार के सुख को खराब कौन बता सकता है?
केवल एक वर्ष की पर्यायवाले
भी सच्चे साधु, जिस सुख का अनुभव कर सकते हैं, वह इंद्रादि भी नहीं कर सकते। शुद्ध धर्म का सच्चा स्वाद, यह वस्तु ही अनोखी है। इसलिए जिसे धर्म को जानने का मन होता
है, वह सच्चे साधुओं के पास जाता है। साधुओं ने संसार के
सुख को पहचाना, सही रूप में पहचाना, इसीलिए उसे छोडा न?
इसलिए सच्चे सुख का
उपाय तो वे ही बता सकते हैं न? संसार को असार और दुःखमय
बताकर भगवान द्वारा कथित धर्म का उपदेश वही कर सकते हैं न? भगवान और साधु को मानने वाला सच्चा श्रावक भी संसार को असार
कहता है। संसार दुःखमय है, दुःखफलक है और दुःख की
परम्परा बढाने वाला है, ऐसा वह भी कहता है।
इस प्रकार जीव धर्म जानने के
लिए गुरु के पास आने के लिए निकले,
इसमें भी असंख्य गुण
निर्जरा वह कर लेता है और गुरु से नमस्कार पूर्वक, विनयपूर्वक धर्म पूछे; गुरु जो कुछ कहें, उसे उपयोगपूर्वक सुने। यह सब उस जीव का क्रियास्थितिपन कहा
जाता है। ऐसे क्रियास्थित बने हुए जीव के और असंख्य गुण निर्जरा बढ जाती है।-आचार्य
श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा
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