मंगलवार, 23 सितंबर 2014

सच्चे जैन बनो


आज जैन समाज की कैसी दुर्दशा है? यह गंभीर चिन्तन एवं चिंता का विषय है। जैन कुल में जन्में लोगों की सारी गतिविधियां, व्यवहार और विचार जिनाज्ञा के विपरीत परिलक्षित होते हैं। पुत्र माता-पिता की आज्ञा नहीं मानता, भाई-भाई को नहीं मानता, भाई-बहिन के बीच खटास चलती है, देरानी-जेठानी के झगडे जगजाहिर होते हैं, चोरी, तस्करी, मिलावट, खोटे धंधे, खान-पान सब में जैन समाज बदनाम।

ऐसी स्थिति आने के कारण पर क्या कभी आपने विचार किया है? जैन कुल में जन्म लिए हुए स्त्री-पुरुषों की ऐसी हीन दशा क्या कम दुःख का विषय है? जैन कुल के संस्कार पूर्ण रूप से जिन्दे और जागृत हों तो क्या ऐसी स्थिति कभी आ सकती है? श्री जिनेश्वर के उपासक, निर्ग्रन्थ गुरुओं के सेवक और अनंत ज्ञानियों द्वारा उपदिष्ट धर्म के पालक जैन संसार में भी इसी प्रकार से जीवित रहने वाले होते हैं कि जिनकी जीवन की कथनी और करनी देखकर, अजैन लोगों को भी ऐसा लगता है कि- जैन जैन ही हैं। इनके आचार और विचारों को कोई पहुंच नहीं सकता, इनकी जोडी नहीं मिलती है।

आज तो माता और पुत्र का परस्पर संबंध कैसा हो रहा है? हद की बात तो यह है कि जब किसी की दीक्षा का प्रसंग आता है, तब दीक्षा-विरोधियों द्वारा कहा जाता है कि माता-पिता की आज्ञा के बगैर किसी को दीक्षा नहीं दी जा सकती।परन्तु, ऐसी बातें करने वालों की दशा जानते हो? भोली/मूर्ख दुनिया को यह पढकर ऐसा लगता है कि ऐसा लिखने वाले में माता-पिता की भक्ति का भण्डार ही भरा होगा, परन्तु इन बेचारों को कहां से खबर हो कि, ऐसे-ऐसे बोलने-लिखने वालों में से कईयों ने माता-पिता को ठोकरें मारकर घर से बाहर निकाल दिए हैं, कितने ही वृद्ध माता-पिता को रोटी-कपडा देने में भी आनाकानी करते हैं। स्वयं की स्वच्छन्दता और विषयवृत्ति के अधीन होकर ऐसा लिखने-बोलने वाले कितने ही माता-पिता को छोडकर अलग हो गए हैं और माता-पिता कहीं सड रहे हैं। उसकी भी उनको परवाह नहीं है। सिर्फ दीक्षा का विरोध करने के इरादे से ही माता-पिता की बात आगे रखते हैं।

आज आपके संसार को देखकर, आपके जीवन को देखकर, आपके चरित्र को देखकर जो कोई जैन धर्म के देव, गुरु और धर्म का अनुमान-विचार-मूल्यांकन करे तो आपको ऐसा लगता है कि कोई यह कहेगा कि जैनों के देव तो श्री वीतराग परमात्मा हैं? जैनों के गुरु तो निर्ग्रन्थ महात्मा हैं? जैनों का धर्म संसार से मुक्त कर मोक्ष पहुंचाने वाला है? समझना चाहिए कि संसार-रसिक आत्माएं स्वयं के पाप के योग से देव, गुरु, धर्म को लजानेवाले होते हैं। इसीलिए जो जैन ऐसे हों उनको सच्चे जैन बनने की तैयारी करनी चाहिए। जो समस्त जैन कुल, वास्तविक जैन कुल बनें, तो जैनों का संसार बिना मालिक का कंगाल और संस्कारहीन नहीं ही रहे।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें