बुधवार, 24 सितंबर 2014

क्योंकि मैं एक कन्या भ्रूण हूं........!


नवरात्रि पर विशेष

क्योंकि मैं एक कन्या भ्रूण हूं........!

  • मैं एक भ्रूण हूं। अभी मेरा कोई अस्तित्व नहीं। मैं प्राकृतिक रूप से सृष्टि को आगे बढाने का दायित्व लेकर अपनी मां की कोख में आई हूं। अब आप पहचान गए होंगे कि मैं सिर्फ भ्रूण नहीं, बल्कि कन्या भ्रूण हूं। बालक भ्रूण होती तो गर्भ परीक्षण के बाद मुझे पहचाने जाने का स्वागत होता, जय श्री कृष्ण के पवित्र सांकेतिक शब्द के साथ। मगर मैं तो कन्या भ्रूण हूं ना, मेरे लिए भी कितना प्यारा पावन सांकेतिक शब्द है, ‘लक्ष्मी, ‘जय माता दी। पर नहीं, मेरे लिए यह शब्द खुशियों की घंटियां नहीं बजाता, जयकारे का उल्लास नहीं देता, क्योंकि इस शब्द के पीछे लाल खून की स्याही से लिखा एक काला सच है, जिससे लिखी जाती है मेरी मौत।
  • कैसी घोर विडंबना है ना जिस देवी का स्मरण कर मुझे पहचाना जाता है, उसे तो घर-घर सादर साग्रह बुलाया जाता है। और मैं उसी का स्वरूप, उसी का प्रतिरूप, मुझे इस खूबसूरत दुनिया में अपनी कच्ची कोमल आँखें खोलने से पहले ही कितनी कठोरता से कुचला जाता है। क्यों ????
  • आप लोग सक्षम हैं, समर्थ हैं, निर्णय ले सकते हैं। मेरी क्या बिसात कि मैं अपना भविष्य तय कर सकूं। अभी तो मेरे अंग भी गुलाबी और कमजोर हैं। बस, एक नन्हा, मासूम, छुटकू सा दिल धडकता है मेरा, यह देखने के लिए कि कौन है मेरा सृजक? किसके प्रयासों से मैंने आकार लिया? किसकी मातृत्व की अमृत बूंदें मेरे पोषण के लिए बेताब हैं?
  • ओह, यह सिर्फ और सिर्फ मेरी ही कोरी भावुकता है। कन्या भ्रूण हूं ना, भावुक होने का गुण नैसर्गिक रूप से मुझे ही तो मिला है। जिन सृजकों से मिलने के लिए मैं हुलस रही हूं, वे नहीं चाहते कि मैं अब और अधिक पनपूं, पल्लवित होऊं। नहीं चाहते कि नौ महीने बाद गर्भ की अंधेरी दुनिया से बाहर आकर उनकी दुनिया की उजली चमक देखूं, परिवार के सपनों में खुशी और ख्याति के सुनहरे रंग भरूं। बालक भ्रूण की तरह उन्हीं का अंश हूं, उतना ही प्यारा हूं फिर भी बेगाना हूं, क्योंकि मैं कन्या भ्रूण हूं।
  • खुद के अस्तित्व के मिटने से कहीं ज्यादा दुःख, बल्कि आश्चर्य मिश्रित दुःख इस बात का है कि मेरी हत्या के लिए "जय माता दी" जैसा दिव्य उच्चारण करते हुए क्या नहीं कांपती होगी जुबान? एक बार भी याद नहीं आती होगी मां के सच्चे दरबार की, जहां पूरी धार्मिकता और आस्था के सैलाब के साथ दिल से निकलता है जय माता दी? याद नहीं आती होगी दीपावली पर लक्ष्मी-पूजा? वही जयकारा कैसे एक संकेत बन गया मेरी देह को नष्ट करने के अपवित्र संकल्प का। जिसने भी पहली बार मेरे आकार को तोडने और मेरी ही मां की कोख से मुझे बेघर करने के लिए यह प्रयोग किया होगा, कितना नीच होगा ना वह? आह, मैं तो इस दुनिया में आई ही नहीं, फिर दुनिया की ऐसी गालियां मेरे अंतर्मन से क्यों उठ रही है?
  • है! इसका भी जवाब है मेरे पास। आंकडों की भयावहता ने मुझे मजबूर किया है ऐसे शब्दों के लिए। और मुझे अफसोस इसलिए नहीं कि कम से कम मैंने किसी देवी-देवता का नाम तो नहीं लिया आपको नवाजने के लिए आपकी तरह। मैं कम से कम ईश्वर को तो नहीं छलती। मेरे जैसी कितनी मेरी कच्ची बहनें दुनिया में आने से पहले कुचल कर एक अनजान दुनिया में लौटा दी जाती है। उस दुनिया में जहां जाने से खुद इंसान भी डरता है। फिर मैं तो भ्रूण हूं, सलोना और सुकोमल। नाजुक और नर्म।
  • आपको पता है 2001-05 के दौरान रोजाना करीब 1800-1900 मुझ जैसी कन्या भ्रूण की हत्याएं हुई हैं। केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2001-05 के बीच करीब 6,82,000 कन्या भ्रूण की हत्या हुई है, अर्थात् इन चार सालों में रोजाना 1800 से 1900 कन्या भ्रूण की हत्या हुई है। आज यह संख्या दुगुनी हो गई है। आपको तो पता होगा, आप ही ने तो की है और करवाई है। आप ही ने तो फैंका है मेरी बहिनों को तालाबों में, कुओं में और झाडियों में।
  • मैं चिखती रहती हूं, तडपती रहती हूं, लेकिन कोई नहीं सुनता मेरी चित्कार। मुझे मांस का एक टुकडा समझ कर निर्ममता से निकाल दिया जाता है मेरी ही मां के गर्भ से। मां से क्या शिकायत करूं, वह तो खुद बेबस सी पडी रहती है, जब उसकी देह से मुझको उठाया जाता है। यही तो शिकायत है मेरी अपनी मां से। जब मुझे इस दुनिया में लाने का साहस ही नहीं तुममें, तो क्यों बनती हो सृजन की भागीदार। तुम्हें भी तो तुम्हारी मां ने जन्मा होगा ना? तभी तो आज तुम मुझे कोख में ला सकी हो। सोचो, अगर उन्होंने भी ना आने दिया होता तुम्हें तब? तुम अपनी ही बच्ची के साथ ऐसा कैसे होने दे सकती हो? नवरात्रि में नौ दिन तक छोटी कन्याओं को पूजने वाली मां अपनी ही संतान को नौ माह नहीं रखती क्यों? क्योंकि वह कन्या भ्रूण है।
  • संस्था सेंटर फार सोशल रिसर्च की निदेशक रंजना कुमारी का कहना है कि यह आंकडा भयानक है, लेकिन वास्तविक तस्वीर इससे भी अधिक डरावनी हो सकती है। गैरकानूनी और छुपे तौर पर और कुछ इलाकों में तो जिस तादाद में कन्या भ्रूण की हत्या हो रही है, उसके अनुपात में यह आँकड़ा कम लगता है। हालांकि आधिकारिक आंकड़े इतने भयावह हैं तो इससे इसका अंदाजा तो लगाया जा सकता है कि समस्या कितनी गंभीर है?
  • सरकारी रिपोर्ट के अनुसार देश में 0-6 साल के बच्चों का लिंग अनुपात 1981 में 962 था जो 1991 में घटकर 945 हो गया, 2001 में यह 927 रह गया और 2011 में 914, राजस्थान व महाराष्ट्र में 883, गुजरात में 886 और मध्यप्रदेश में 912 ही रह गया है। जैन समाज और समृद्ध समाज में तो यह और भी कम है, जहां अहिंसा का खूब ढिंढोरा पीटा जाता है। है न हैरत की बात? आपको नहीं डराते ये आंकड़े? मुझे तो जब डॉक्टर कहा जाने वाला मनुष्य अपने आधुनिक खंजर से उखाडता है, उससे भी ज्यादा डरावने लगते हैं ये आंकड़े? कैसी क्रूर मानसिकता है यह?
  • मुझे पता है कि 1995 में बने जन्म पूर्व नैदानिक अधिनियम (प्री नेटल डायग्नास्टिक एक्ट, 1995) के मुताबिक बच्चे के लिंग का पता लगाना गैर कानूनी है, जबकि इसका उल्लंघन सबसे अधिक होता है। क्या आपको नहीं पता? और सुनिए, भारत सरकार ने 2011-12 तक बच्चों का लिंग अनुपात 935 और 2016-17 तक इसे बढा कर 950 करने का लक्ष्य रखा है। क्योंकि देश के 328 जिलों में बच्चों का लिंग अनुपात 950 से कम है। क्या अब भी आपको मेरी पीडा का आभास नहीं? सृष्टि कैसे बढेगी, कैसे चलेगी जब जन्मदात्री ही दुनिया में आने से वंचित की जाती रहेगी?
  • मैं तो गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम, 1971 भी जानती हूं, जिसके अंतर्गत गर्भवती स्त्री कानूनी तौर पर गर्भपात केवल इन स्थितियों में करवा सकती है-

  1. जब गर्भ की वजह से महिला की जान को खतरा हो।
  2. महिला के शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को खतरा हो।
  3. गर्भ बलात्कार के कारण ठहरा हो।
  4. बच्चा गंभीर रूप से विकलांग या अपाहिज पैदा हो सकता हो।

  • इसके साथ ही आईपीसी की धारा 313 में स्त्री की सम्मति के बिना गर्भपात करवाने वाले के बारे में कहा गया है कि इस प्रकार से गर्भपात करवाने वाले को आजीवन कारावास या जुर्माने से भी दण्डित किया जा सकता है। पर इन कानूनों के नाम पर मैं किसे डरा रही हूं? उन्हें जो ईश्वर से भी नहीं डरते और जय माता दी कहकर जीवनदायिनी मां का नाम मेरी मौत से जोडकर कलंकित करते हैं?
  • नौ दिनों तक स्त्री पूजा और सम्मान का ढोंग करने वालों अपनी आत्मा से पूछो कि देवी के नाम पर रचा यह संकेत क्या देवी ने नहीं सुना होगा? अगली बार जब किसी नन्हीं आत्मा को पहचाने जाने के लिए तुम बोलो जय माता दी तो मेरी कामना है कि तुम्हारी जुबान लडखडा जाए, तुम यह पवित्र शब्द बोल ही ना पाओ, देवी मां करे, नवरात्रि में तुम्हारी हर पूजा व्यर्थ चली जाए... और आंकड़े यूं ही बढते रहे तो तुम्हारे हर पाप पर मेरे सौ-सौ शाप लगे।
  • मैं सच में दुःखी हूं, अकेली हूं, मेरी अनसुनी मत करो, मैं आपकी हूं, मुझे दुनिया के उजाले में आने दो...! हां, मैं कन्या भ्रूण हूं, मुझे भी खुले आकाश तले गुनगुनाने दो..!

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