जिन नारियों को अपना शील-सतीत्व प्यारा है, उन्हें अपनी स्वतंत्रता-स्वच्छंदता
पर स्वयं अंकुश लगाना होगा, क्योंकि आज की दुनिया बहुत जालिम हो गई है, चारों ओर
वासना का भयंकर प्रकोप और भूत सवार है। आज के स्वच्छंदी लोगों ने दुष्ट वासनाओं के
कारण विभिन्न प्रचार माध्यमों से ऐसी भयानक भावनाओं का प्रचार किया है, जिससे नित्य अनेक नारियों के शील नष्ट
हो रहे हैं। यदि आत्मा को दुर्गति से बचाना हो और अपने शील की रक्षा करनी हो तो
वर्तमान नारियों को अपना जीवन मर्यादित बनाने के पूर्ण प्रयास करने चाहिए। जो
स्त्रियां आज इच्छानुसार व्यवहार करने की, इच्छानुसार मनुष्यों से परिचय बढाने की और किसी भी
समय चाहे जहां जाने-आने आदि की जो स्वतंत्रता की बातें करती हैं, वह स्वतंत्रता नहीं, स्वच्छन्दता है, वे सचमुच दुराचार को निमंत्रण देना
चाहती हैं। अतः ऐसे प्रचार माध्यमों और ऐसी स्त्रियों के संसर्ग से दूर रहना
चाहिए।
“स्त्रियों के सम्पर्क में क्या
बुराई है? स्त्रियों के सम्पर्क
में रहकर भी ब्रह्मचर्य क्यों नहीं पालन किया जा सकता है? जो व्यक्ति हृदय से ब्रह्मचारी हैं, उन्हें स्त्रियों से इतना भय क्यों? जो लोग स्त्रियों के सम्पर्क से
डरते हैं, उनके परिचय से भी दूर
भागते हैं, वे
सच्चे ब्रह्मचारी नहीं हैं। वास्तविक ब्रह्मचारी तो वे हैं जो स्त्रियों के निकट सम्पर्क
में रहकर भी ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं। अतः पुरुषों को स्त्रियों तथा स्त्रियों
को पुरुषों के सम्पर्क में आने से तनिक भी हिचकिचाना नहीं चाहिए। पारस्परिक सम्पर्क
से ब्रह्मचर्य का खण्डन होता है, यह
भ्रम ही मिथ्या है। पारस्परिक सम्पर्क में नहीं आने का कहने वाले शास्त्र
भ्रमपूर्ण हैं। पारस्परिक सम्पर्क से भयभीत होने वाले मनुष्य भीरू होते हैं। इस
प्रकार की भीरूता को त्यागना ही ब्रह्मचर्य है।” इस प्रकार की उल्टी बातें करके जनता को गुमराह करने
वाले मनुष्य यदि महापुरुषों अथवा महासतियों के रूप में पूजनीय हों तो वर्तमान समय
का यह एक महान् कलंक है और उन कलंकित आत्माओं के कारण ही आज स्वतंत्रता के नाम से
भयानक स्वच्छन्दता महामारी की तरह फैल रही है। इस स्वच्छन्दता का मूलोच्छेदन किए
बिना आर्यों का आर्यत्व खिल नहीं सकेगा।
ब्रह्मचर्य-प्रेमी मनुष्य ब्रह्मचर्य की रक्षार्थ किस
प्रकार का जीवन व्यतीत करते थे? यह
ज्ञात करने के लिए उन अनन्त ज्ञानियों के आगमों का सद्गुरुओं की निश्रा में रहकर
विशुद्ध श्रद्धा से अध्ययन करना होगा। पति के वियोग के समय सती स्त्रियां अपना
जीवन किस प्रकार व्यतीत करती थीं और पतिव्रता स्त्रियों की अपने पतियों के प्रति
किस प्रकार की वृत्ति होती थी? यह
ज्ञात करने के लिए तो महासती अंजना का जीवन चरित्र अत्यंत ही उत्तम है। शीलवान्
स्त्रियों के लिए पति-वियोग में स्वच्छन्द आचरण करना तो सचमुच शील का भरे बाजार
में नीलाम करने के जैसा है। यह कुलीन स्त्रियों के लिए कतई उचित नहीं है। अपनी
कुलीनता की रक्षा के लिए स्त्रियों को स्वेच्छाचारिता त्याग कर मर्यादित रहना
चाहिए।-आचार्य श्री
विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा
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