आज ऐसे सैंकडों परिवार दृष्टिगोचर हो रहे हैं, जिनमें वयोवृद्ध माता-पिता की अत्यंत कारुणिक दशा है। वे तो भूखे मरते हैं और
उनके पुत्र-पुत्री ऐश्वर्य युक्त जीवन व्यतीत कर रहे हैं। ऐसा न केवल आम घर-घरानों
में हो रहा है,
बल्कि तथाकथित उच्च कुलों में भी हो रहा है। यह कितना दुःखद
है?
यह आपकी वर्तमान शिक्षा का विषैला प्रभाव है। हमारे
शास्त्रों में तो प्रमाण है कि सर्वोत्तम पदार्थों से पहले माता-पिता की भक्ति कर
के,
उन्हें तृप्त करने के बाद बेटे-बहू आदि उपभोग करते थे; यदि माता-पिता जीवित न हों तो भी उनका स्मरण करके, मन
ही मन उनके चरणों में नतमस्तक होकर फिर स्वयं भोजन करने की गौरवशाली परम्परा हमारे
यहां रही है। वर्तमान शिक्षण संस्थाओं की ढेर सारी पुस्तकों में से किसी एक में भी
आप ऐसे उपदेश खोज सकेंगे क्या? नहीं ही बता पाएंगे। जबकि मैं
आपको शास्त्रों में सैकडों उदाहरण बता सकता हूं। फिर भी आप आधुनिक शिक्षा का ही
गुणगान करते हैं, यह कितनी विचित्र बात है?
मैं यह नहीं कहता कि आप अपनी संतान को अज्ञानी रखो, परन्तु यदि वे शिक्षा प्राप्त कर के भी शैतान ही बनने वाले हैं तो फिर उन्हें
अशिक्षित रखना क्या बुरा है? आपने जिन्हें खेल खिलाए, स्वयं घोडा बनकर जिन्हें आपने पीठ पर सवारी करवाई, खुद
गीले में सोकर जिन्हें सूखे में सुलाया, जिन्हें पालपोस कर बडा
किया;
वही सन्तान आज आपको लात मार रही है। वास्तव में तो आपको न
तो उन्हें खिलाना आया और न रुलाना आया, अन्यथा आपके धन से
शिक्षित सन्तान ऐसी होती क्या? विद्यालयों, छात्रावासों, महाविद्यालयों में ही आज शिक्षा के नाम पर
बच्चों में कितना विष भरा जा रहा है? इस पर आपने कभी ध्यान
दिया है?
तप-त्याग से, विनय-विवेक से और किसी भी
परिस्थिति तथा वातावरण में हर्ष पूर्वक हम जीवन व्यतीत कर सकें, ऐसी शिक्षा आज दी जाती है क्या?
वर्तमान शिक्षा का परलोक, पुण्य-पाप, संस्कारों आदि सामान्य बातों के साथ तनिक भी संबंध नहीं है। उन सबको भुलाने
वाली यह वर्तमान शिक्षा है। आज तो केवल पैसा कमाना, भक्ष्याभक्ष्य
का विवेक रखे बिना तामसिक खाना-पीना, आधुनिकता के नाम पर
फूहड रहन-सहन और स्वच्छन्द घूमने-फिरने की सुविधाओं का ही विचार किया जाता है।
क्या यह पागलपन नहीं है? ऐसी शिक्षा पाकर, आपकी संतान आपकी न रहे तो आप सहन कर सकते हैं, परन्तु
सम्यग्ज्ञान प्राप्त कर, आपकी संतान दीक्षित होकर साधु
हो जाए तो आप सहन नहीं कर सकते। अपनी संतान को ऐसी शिक्षा देकर आप उनका अपकार ही
कर रहे हैं,
क्योंकि उनके परलोक की चिन्ता किए बिना आप उन्हें सिर्फ
धनोपार्जन के लिए ही शिक्षित कर रहे हैं। परन्तु ऐसा करने में वह असंतोष की अग्नि
में जल मरे, उसकी आपको तनिक भी चिन्ता नहीं है।-सूरिरामचन्द्र
(इस विषय पर मुझे आपकी टिप्पणी का बेसब्री से इन्तजार रहेगा.)
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