नीतिशास्त्र तो प्राथमिक शास्त्र है। इसके समक्ष धर्मशास्त्र तो अत्यंत महान्
हैं। फिर भी धर्मशास्त्र का विरोध करने वाले नीतिशास्त्र का आदेश मानने का भी
निषेध करते हैं। क्यों?
कारण कि इस प्रकार के नीतिशास्त्र का भी दृढता पूर्वक कथन
है कि इस संसार में अनीति संभव ही नहीं है, क्योंकि तीनों प्रकार के जीव
अनीति का आश्रय भी नहीं लेते। उत्तम जीव तो स्वभाव से ही अनीति नहीं करते, मध्यम
जीव परलोक के भय से अनीति नहीं करते और अधम जीव इस लोक की प्रतिष्ठा बचाने के
उद्देश्य से अनीति का आश्रय नहीं लेते। अब शेष रहे हैं अधमाधम जीव। ये अनीति करते
हैं, परन्तु उन्हें मनुष्य ही कौन गिनता है? इसलिए इस देश में अनीति की
संभावना नहीं है। इस आर्य देश का नीतिशास्त्र भी इस प्रकार की बातें करता है।
आपकी गिनती किसमें है?
क्या आपको अधमाधम की श्रेणी में गिना जाए तो अच्छा लगेगा? यह
बहुत ही गम्भीरता से सोचने का विषय है। आपके नीतिशास्त्र और अन्य धर्म-दर्शन चाहे
धन को पाप नहीं मानते,
परन्तु अनीति को तो पाप मानते ही हैं? आगे
जाकर केवल हमारा जैन धर्मशास्त्र कहता है कि नीति तो अच्छी, पर
धन तो बुरा ही है। जैनशासन के अतिरिक्त किसी ने यह बात नहीं कही।
मैं ऐसा समय भी देख चुका हूं, जब व्यापारी के एक बही ही हुआ करती थी। हर
समय वह खुली पडी रहती थी। उसमें आने वाली धन राशि जमा होती और जो दिया जाता, वह
किसी के नाम लिखा जाता था। जो शेष बचत होती वह गिनीगिनाई तिजोरी में पडी रहती। आज
तो परिस्थिति भिन्न है। यह सब कब बदल गया? अनेक व्यक्तियों का कथन है कि
भारत की स्वतंत्रता के कुछ वर्षों बाद यह परिवर्तन आया है।
यदि यही बात है तो आज जो कहा जा रहा है कि शिक्षा में वृद्धि हुई, विज्ञान
में वृद्धि हुई,
जनसंख्या में वृद्धि हुई और देश की प्रगति में वृद्धि हुई; यह
सब प्रगति की बातें करने वाले चालाक और दम्भी ही हैं न? सेठ
नीचे उतर गए और नौकर सेठ बन गए। यह कहा जा रहा है कि यह सब नियमानुसार हो रहा है।
यह देश की कैसी दशा है?
आज जिधर देखो उधर अनीति का बोलबाला है, क्या
यही स्वतंत्रता है और यही प्रगति या विकास है?
नीति की लम्बी-लम्बी बातें अलग रखें, तो भी स्वामी, स्वजन, मित्र
अथवा अन्य कोई सज्जन जो आपका विश्वास कर रहा है, उससे विश्वासघात नहीं
हो यही नीति है। यह संक्षिप्त व्याख्या तो आप समझ कर उस पर अमल कर सकते हैं न? लेकिन
नहीं, आज प्रायः हर आदमी दूसरे को लंगडी लगाकर नीचे गिराने और खुद आगे दौडने में लगा
हुआ है। चारों तरफ अनीति का ही साम्राज्य दिखाई दे रहा है, ऐसे
में इस आर्य देश का और आने वाली पीढी का भविष्य क्या? -सूरिरामचन्द्र
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