‘किसी
से तुलना करना और किसी से अपेक्षा करना, अपने मन में दुःख और क्लेश
उत्पन्न करना है।’
व्यक्ति की यह सामान्य प्रवृत्ति है कि वह जब किसी के लिए
कोई कार्य या भलाई करता है तो उससे अपेक्षा करने लगता है कि बदले में वह भी उसके
लिए कुछ करे और जब उसकी यह अपेक्षा पूरी नहीं होती है तो वह दुःखी होने लगता है।
किसी ने अपने पुत्र के लिए अपना जीवन दांव पर लगा दिया, लेकिन
बुढापे में वह उसकी लाठी नहीं बना। पत्नी के लिए सुख-सुविधा के तमाम साधन जुटाए, लेकिन
उसने साथ नहीं दिया। मित्रों के लिए बहुत कुछ किया, लेकिन जब जरूरत पडी तो
सबने दगा दे दिया।
इस तरह की तमाम बातें व्यक्ति के साथ होती रहती हैं और वह दूसरे लोगों और
नाते-रिश्तेदारों से अपनी अपेक्षाएं पूरी नहीं होने पर दुःखी होता रहता है, लेकिन
वह आगमों में मौजूद जिनेश्वर देवों के वचनों, जैन कथा साहित्य आदि के रूप
में पूर्वजों के ज्ञान की थाती का अवलोकन करे तो उसे जीवन का मर्म समझाने और दिशा
देनेवाले ऐसे बहुत से उदाहरण, ऐतिहासिक चरित्र, धर्म
कथाएं, अमूल्य नीतिवचन और सूत्रवाक्य मिल सकते हैं, जिनसे उसका मार्गदर्शन
हो सकता है, प्रेरणा मिल सकती है।
एक कहावत है ‘नेकी कर दरिया में डाल।’ यानी भलाई करो और इस बात की बिल्कुल
अपेक्षा मत करो कि सामने वाला उसके बदले में तुम्हें भी कुछ देगा। इस बात को जिस
भी व्यक्ति ने अपने जीवन में उतार लिया, तय मानिए कि सुख उससे अधिक
दूर नहीं है।
हालांकि यह आसान नहीं है कि किसी की मदद करो, सेवा करो और वह दगा दे
जाए तो भी उसे विराट मन से क्षमा कर दो, लेकिन यह लाख टके की बात है
कि मदद करने के बाद उसे भूलने की आदत जितनी विकसित होती जाएगी, मनुष्य
उतना ही सुखी रहेगा।
व्यक्ति को कोशिश करनी चाहिए कि पुष्प की तरह सुगंध बांटना ही उसका धर्म बने
और इसके बदले उसके मन में कोई अपेक्षा न हो। जीवन को सरल एवं तनाव रहित बनाना
चाहते हैं तो दो चीजों से बचें- दूसरों से तुलना करना और दूसरों से अपेक्षा करना।
इस जगत में यदि आपने ‘नेकी कर दरिया में डाल’
का सही मर्म समझ लिया तो संसार रूपी भवसागर को पार करने में
बहुत आसानी होगी। इसी प्रकार दूसरों से कभी तुलना न करें। अमुक के पास यह है और
मेरे पास यह नहीं। इस प्रकार का भाव मन में आ गया तो आपका चैन चला जाएगा, जीवन
बेचैन हो जाएगा,
मन अशान्त हो जाएगा। मन में हमेशा प्रशस्त भाव रखें, अपनी
कमियों और कमजोरियों को देखें और उन्हें दूर करने का प्रयास करें।-सूरिरामचन्द्र
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