आज समाज में संस्कारों की कितनी कमी होती जा रही है? आजकल के माता-पिता को फुर्सत नहीं है कि वे आधा घंटा भी अपने बच्चों के पास
बैठकर उन्हें धर्म की शिक्षा दें, समझाएं, अच्छे संस्कार दें। वह माता शत्रु के समान है, जिसने
अपने बालक को संस्कारित नहीं किया। वह पिता वेरी के समान है, जिसने अपने बच्चे को संस्कार नहीं दिए। आजकल के माता-पिता तो अपने बच्चों को
अच्छी शिक्षा के नाम पर कान्वेन्ट में डाल देते हैं। आप सोचते हैं कि कान्वेन्ट
में पढने जाएगा तो हमारा बच्चा इन्टेलीजेन्ट (चतुर) बनेगा। पढ-लिखकर होशियार बन
जाएगा और बडा आदमी बन जाएगा। लेकिन, वहां जो शिक्षा परोसी जाती है, उसमें आत्मा कहां है? वहां तो जहर ही जहर है। संसार
में बिगडने,
भटकने के साधन बढते जा रहे हैं और धार्मिक संस्कारों के
साधन घटते जा रहे हैं। ये सब आपने विचार नहीं किया। आप उसे कितना ही सम्हाल कर
रखिए,
लेकिन जब बचपन से ही बच्चा ऐसे माहौल में पलता है, पढता है,
जो सीखता है, उसमें वे संस्कार आएंगे ही।-सूरिरामचन्द्र
(इस विषय पर मुझे आपकी टिप्पणी का बेसब्री से इन्तजार रहेगा.)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें