सभी जीव शान्ति चाहते हैं, अशान्ति कोई नहीं चाहता, लेकिन
शान्ति और अशान्ति के साधन के बारे में अनेक मतभेद हैं। एक जिसे अशान्ति का कारण
मानता है, दूसरा उसे शान्ति का साधन मानता है। एक को जिसके योग में शान्ति लगती है, दूसरे
को उसी के योग में अशान्ति लगती है। आजकल सभी लोग येन-केन-प्रकारेण अपना स्वार्थ
साधने में लगे हैं,
उससे दूसरे को कष्ट पहुंच रहा है, इसकी
रत्तीभर चिन्ता उन्हें नहीं है। यह वृत्ति कई बार इंसान को जानवर से भी बदतर बना
देती है। विवेकी मनुष्य के मन में होता है कि मुझे जिस तरह अनुकूलता पसंद है और
प्रतिकूलता पसंद नहीं है,
वैसे सभी जीवों को अनुकूलता अच्छी लगती है और प्रतिकूलता
खराब लगती है। इसलिए मुझे ऐसा व्यवहार करना चाहिए जो किसी के लिए प्रतिकूल न हो और
जिसके कारण किसी को अशान्ति न हो। ऐसी वृत्ति से आपको अवश्य ही शान्ति मिलेगी और
धर्म आए बिना नहीं रहेगा,
क्योंकि किसी की पसंद में बाधक न बनना हो तो ‘मुझे
कैसे जीना चाहिए’,
यह भाव पैदा हुए बिना नहीं रहेगा और इससे आज जो मनुष्य, मनुष्य
कोटि में आने लायक नहीं रहा है, वह सच्चा मनुष्य बन जाएगा।-सूरिरामचन्द्र
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