‘कुएं
के मुख पर वस्त्र नहीं बांधा जा सकता और लोगों के मुँह पर ताला नहीं लगाया जा सकता
है’। यह कहावत लोक के स्वभाव का परिचय देने वाली है। लोकनिन्दा से सर्वथा बचना, यह
कठिन है, उसमें भी उन्मार्ग के उन्मूलन पूर्वक सन्मार्ग की स्थापना करने के लिए
प्रयत्नशील बने हुए महापुरुषों की कठिनाइयों का तो कोई पार ही नहीं है। उन्मार्ग
के रसिक वैसे महापुरुषों के लिए पूर्ण रूप से कल्पित बातें फैलाकर उन्हें कलंकित
करने के जी-तोड प्रयत्न करने से चूकते नहीं हैं। इस प्रकार वे तीन सिद्धियां
प्राप्त कर सकते हैं। एक तो यह कि उन्मार्ग के उच्छेदक और सन्मार्ग के संस्थापक
महापुरुषों को अधम कोटि का बताकर, अज्ञानी लोगों को उनके पवित्र संसर्ग से
दूर भगा सकते हैं। दूसरी,
उन्मार्ग के उन्मूलन का और सन्मार्ग के संस्थापन का पवित्र
कार्य करने वालों में भी जो लोकनिन्दा के सामने टिकने की हिम्मत नहीं रखते, उनको
फरजीयात मौन स्वीकार करना पडता है और तीसरी सिद्धि यह कि लोकवायका के अर्थी, उन्मार्गनाश
और सद्धर्म प्रचार का कार्य छोडकर वे रुकते नहीं हैं, अपितु
स्वयं भी उन्मार्गगामी बन जाते हैं। ऐसों के पाप से अनेक आत्माएं सद्धर्म से वंचित
रह जाती हैं। ऐसे व्यक्ति शासन के भयंकर दुश्मन होते हैं और वे समाज को
अस्त-व्यस्त कर देते हैं। वे लोग स्वयं का पाप छिपाने के लिए वफादार शासन सेवकों
की भी निन्दा करते हैं। सत्त्वशील महापुरुष तो ऐसी आफतों की उपेक्षा करके स्वयं का
पवित्र कार्य करते ही जाते हैं, लेकिन कल्याण के अर्थियों को भी इसे समझकर
सावचेती रखनी चाहिए।-सूरिरामचन्द्र
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