विषय सुख की वासना अच्छे-अच्छे आदमियों को भी हैवान एवं पाप से डरने वालों को
भी पापासक्त बना सकती है। साधु पुरुषों के लिए तो काम-भावना के उद्देश्य से इन्द्रियों
का यत्किंचित विचार भी धिक्कार और दोष रूप होता है। उन्हें तो मन, वचन, काया
से सर्व प्रकार के सम्भोगों का त्याग ही करना होता है। गृहस्थों में जो सर्वथा
ब्रह्मचर्य पालन करने में अशक्त होते हैं, ऐसे गृहस्थों को पर-स्त्री
मात्र का त्याग करना चाहिए तथा अपनी विवाहिता स्त्री में ही संतोष वाले बनना
चाहिए।
परस्त्री से विमुखता और स्वस्त्री से संतोष यह दो बातें गृहस्थ के रूप में
उत्तम ब्रह्मचारी बनाने वाली मानी गई है। सच तो यह है कि गृहस्थ को भी विषय सेवन
के प्रति ग्लानि होनी चाहिए। गृहस्थ को अपनी दृष्टि ऐसी निर्मल बनानी चाहिए कि कोई
भी स्त्री नजर में आए तो उसके मन में विकार उत्पन्न न हो। अपनी पत्नी में भी काम
का रंग चढाने की वृत्ति नहीं होनी चाहिए। वेदोदय रूप रोग के कारण यदि सहवास के
बिना असमर्थ हो जाए तो बने जिस प्रकार रोगी दवा लेता है, उस
प्रकार गृहस्थ भोग को भोगे,
परन्तु मन को विषय-वासना का घर न बनने दे।-सूरिरामचन्द्र
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