स्वयं की कमी को नहीं सुनने वाला व्यक्ति हितशिक्षा देने वाले को उपकारी मानने
के बजाय उस पर क्रोध करता है, उसका भला कभी नहीं होता, यह
निश्चित बात है। जिसमें स्वयं की कमी सुनने की क्षमता ही न हो, उसका
कल्याण किस प्रकार हो सकता है? आप यहां व्याख्यान सुनने के लिए आते हैं
या वखाण? यहां जीवाजीवादि के स्वरूप की व्याख्या चलती हो तो आपको रुचिकर लगता है या
आपका वखाण-प्रशंसा आपको रुचिकर लगती है? यहां आने का हेतु क्या है? कमी
सुनने का या प्रशंसा सुनने का? आप आप में रही हुई कमियों को दूर करने के
लिए यहां आते हैं और हम आपका वखाण करें, यह कैसे हो सकता है? हमें
आपकी कमी बतानी चाहिए या नहीं? अमुक-अमुक कमियां अमुक-अमुक रीति से दूर
की जा सकती है,
ऐसा हमें कहना चाहिए या नहीं? कल्याण चाहते हो तो
कमी सुनने और उसे दूर करने के लिए सदा तैयार रहो।-सूरिरामचन्द्र
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