जब मर्यादा टूटती है तो विनाश आता है। नदी-नाले भी जब तक मर्यादा में बहते हैं, तब
तक तो अच्छे लगते हैं। किनारों के बीच बहते रहते हैं, तब
तक तो खेतों को पानी देते हैं, उन्हें हरियाली से भर देते हैं।
खेतों-खलिहानों को लहलहाता बनाकर मनुष्यों को भी खुशहाली से, प्रसन्नता
से भर देते हैं,
लेकिन वे ही नदी-नाले जब मर्यादाएं छोड देते हैं, मर्यादा
से बाहर बहने लगते हैं तो क्या होता है? बाढ आ जाती है, विनाश-लीला
सामने खडी हो जाती है। हजारों घर पानी में डूब जाते हैं। चारों ओर तबाही का आलम ही
नजर आता है।
माता-पिता की पुत्र के प्रति क्या मर्यादा होती है? पुत्र
की माता-पिता के प्रति क्या मर्यादा होती है? एक गुरु का शिष्य के प्रति
क्या कर्त्तव्य होता है?
शिष्य का गुरु के प्रति क्या कर्त्तव्य होता है? इन
सारी बातों का पालन आज कौन कर रहा है? और कहां कर रहा है? खान-पान, रहन-सहन
आदि हर चीज में मर्यादा की जरूरत होती है। लेकिन, आज सभी ओर मर्यादाएं
टूट रही हैं। अमर्यादित जीवनशैली ने समाज में कई तरह के संकट पैदा कर दिए हैं।
वीतरागता का नाम लेकर आज हम अनेकों मर्यादाओं को लांघते जा रहे हैं। अपनी संस्कृति
को छोडते चले जा रहे हैं। जीवन से एक मर्यादा भी अगर जाती है, अथवा
भंग होती है तो उसके साथ-साथ सारी मर्यादाएं धराशायी हो जाती हैं और जब जीवन
मर्यादा विहीन हो जाता है,
तो महाविनाश होता है।-सूरिरामचन्द्र
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