सोमवार, 27 मार्च 2017

सवाल-5

शिक्षा की तरह ही बुरी स्थिति चिकित्सा की है। आजादी के 70 साल बाद भी आज आम आदमी को बुनियादी चिकित्सा सुविधा नहीं मिल पा रही है। गांवों में डॉक्टर, नर्स और दवाओं की तो क्या बात करें, शहर के जिला अस्पतालों, संभागीय मुख्यालय के सरकारी अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की सुविधा, आधुनिक संसाधन और पर्याप्त दवाएं उपलब्ध नहीं है। वहीं निजी अस्पतालों में पूरी लूटमार मची हुई है। पूरा पैसा है तो उपचार है, अन्यथा उपचार संभव नहीं है। तो क्या इसी प्रकार गरीब आदिवासियों और आम आदमी को मरने के लिए छोड दिया जाएगा? सरकार शिक्षा और स्वास्थ्य दोनों ही सेवाओं में अपना बजट घटा रही है, जो सरकार की मूलभूत जिम्मेदारी है। चिकित्सा के भी निजीकरण और व्यापारीकरण को बढावा दे रही है...। क्या यह देश के और आम आदमी के हित में है...? क्या आम आदमी केवल बरगला कर वोट लेने के लिए ही है...? यदि नीतियां नहीं बदली गई तो आने वाले समय में चिकित्सा क्षेत्र का तो और भी विभत्स रूप देखने को मिलेगा, जब आम आदमी के जीवन भर की कमाई मामूली बिमारी में ही साफ हो जाएगी। क्योंकि आज जिस प्रकार एक करोड और दो करोड रुपये फीस लेकर डॉक्टरी की खेती की जा रही है, क्या ऐसे डॉक्टर गरीबों के लिए श्राप सिद्ध नहीं होंगे...?

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