अज्ञानी आत्माएं पाखण्डी एवं स्वार्थी मनुष्यों के जाल में फंसने के कारण महान
भयानक पाप को भी धर्म मान लेती है और धर्म के नाम पर अनेक प्रकार के हिंसादि घृणित
कार्य प्रारम्भ करती है। ऐसे मनुष्यों को यदि पाप-मार्ग से कोई उबारना चाहे और
सत्य का ज्ञान कराना चाहे तो वह भी उन पापात्माओं से सहन नहीं होता। सत्य का ज्ञान
कराने के लिए उपकारी पुरुष कठोर शब्दों का प्रयोग भी करते हैं और उसके लिए उन्हें
अनेक कष्ट सहन करने पडते हैं। सच्चा धर्म-प्रेमी मनुष्य धर्म की रक्षा के लिए अपनी
ताकत का उपयोग करने में लेशमात्र भी प्रमाद अथवा उपेक्षा नहीं करता और उसी में
उसके धर्म-प्रेम की कसौटी होती है। जिन्हें वास्तविक धर्म के प्रति प्रेम नहीं है
वे तो बात-बात में यह कह देते हैं कि ‘होगा, जो
करेगा वो भरेगा,
हम क्यों व्यर्थ समय नष्ट करें?’ ‘चलने
दो’ अपने को क्या करना है,
ऐसे मंद विचारों और लापरवाही से समाज सड जाता है। धर्म का
सच्चा प्रेमी तो ऐसे समय पर शान्त बैठा रह ही नहीं सकता।-सूरिरामचन्द्र
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