नोटबंदी....!
नोटबंदी अब तक भी अनसुलझी पहेली है। यह एक बहुत बडा राजनीतिक पैंतरा था और इस पैंतरे
को सही साबित करने के लिए सरकार ने पैंतरे पर पैंतरे, कई पैंतरे
चले और विपक्ष सही होते हुए अपने को सही साबित नहीं कर पाया, जनता ठगी गई, किन्तु वह पूंजीपतियों के प्रति ईर्ष्या और
देश-भक्ति के दिखावे में छली गई। सारे तथ्यों के बावजूद विपक्ष जनता के गले अपनी बात
नहीं उतार पाया,
जबकि भाजपा ने अपने झूठ को सच के रूप में लोगों के गले उतार
दिया। अधिकांश मीडिया ने इसमें पूरा साथ दिया। फिर प्रधानमंत्री जी कभी घडयाली आंसू
बहाकर तो कभी अपने छप्पन ईंच के सीने से आम जनता में जोश भरकर उसे भावुक बनाने में
पूरी तरह सफल रहे, अपने जिग्री पार्टी अध्यक्ष के माध्यम से उनकी
रणनीति परवान चढी। किस-किस मुद्दे का कहां, कब और
कैसे इस्तेमाल करना है, इस कला में उनके मुकाबले विपक्ष
जीरो साबित हुआ। तीन तलाक भी इसी प्रकार का एक राजनैतिक पैंतरा था। बहरहाल हम नोटबंदी
की बात करते हैं। लोकसभा चुनाव के समय नरेन्द्रभाई मोदी द्वारा बढचढ कर घोषणाएं करने
के बावजूद विदेशों में जमा कालाधन तो लाया नहीं जा सका, यह विपक्ष
के लिए एक बडा मुद्दा था, लेकिन विपक्ष इसका ढोल नहीं बजा
सके,
इसकी हवा निकालनी जरूरी थी। दूसरा भाजपा सत्ता में लम्बी पारी
खेल सके इसके लिए प्रचण्ड बहुमत से उत्तरप्रदेश का चुनाव जीतना उसके लिए बहुत जरूरी
था। यहीं पूरी गोपनीयता के साथ ताबडतोबड नोटबंदी करने का खयाल परवान चढा और रिजर्व
बैंक की पूरी तैयारी के अभाव और ना-नुकुर के बावजूद इसे लागू किया गया। घोषणा से पहले
दो हजार के नोट भारी तादाद में छाप लिए गए और भाजपा के कुछ खास लोगों को और खास उद्योगपतियों
को यह कह दिया गया कि वे पूरी गोपनीयता के साथ अपने नोट बदलवा लें। दूसरे किसी राजनीतिक
दल कांग्रेस,
सपा, बसपा आदि को इसकी भनक भी नहीं
लगने दी। रणनीति यह थी कि ये पार्टियां आर्थिक संकट में आ जाएं और ठीक से चुनाव नहीं
लड सकें,
चुनावों में वोट लेने के लिए जो पैसे-शराब आदि की बंदरबांट होती
है,
वह नहीं हो सके। विपक्ष टूट जाए और भाजपा खुलकर खेल सके। बैंकों
में जमा पैसा भी निकालने नहीं दिया। आम आदमी परेशान हुआ तो उसे देश के लिए थोडा कष्ट
झेलने का वास्ता दिया और यह जलन-ईर्ष्या उसमें पैदा की गई कि यह कार्यवाही कालाधन दबा
कर बैठे पूंजीपतियों के खिलाफ है, साले सब रो रहे हैं। तो आम आदमी
को दुःख में भी मजा आ गया। यही नहीं, इसके लिए समय-समय पर माहौल
के अनुसार कई बातें की गई, जैसे- इससे आतंकवाद की कमर टूट
गई है,
टेक्स चोर धमाधम टेक्स जमा करवा रहे हैं, कालाधन जमा करने वालों के पसीने छूट रहे हैं, फिर दो-दो
हजार के नोटों की करोडों की संख्या में बरामदगी दिखाई गई, लोग यही
नहीं सोच सके कि अभी तो नोटबंदी की गई है, बैंक
और एटीएम इतना पैसा दे नहीं रहे हैं तो इतनी मात्रा में ये नोट कहां से आए और कैसे
बरामद हो रहे हैं? अब वे सब नोट कहां हैं? कौन है इस सारे नाटक के पीछे? यह देश की घृणित राजनीति का अलग
चेहरा है। नोटबंदी के कारण बैंकों के बाहर लगी लाइन में सौ से ज्यादा लोग मर गए, वे किसी धन्ना सेठ के नोट बदलवाने के लिए लाइन में नहीं थे। बेटी की शादी, अपना ही ईलाज करवाने के लिए अपना जमा पैसा लेना चाहते थे।
नोटबंदी
से राजनीतिक लाभ-हानि का खेल तो हुआ, लेकिन सरकार को क्या मिला....? इसके आंकडे अब तक भी कोई बताने के लिए तैयार नहीं है कि कितना धन आया और उसकी तुलना
में नए नोटों की छपाई व अन्य लागत में कितना गया...? सरकार
तो तीन साले में अपने वादे के मुताबिक नए रोजगार नहीं दे सकी, लेकिन इस नोटबंदी से कितने लोगों का रोजगार छिन गया? विपक्ष
इस मुद्दे को ठीक से नहीं उठा सका और लोगों के गले नहीं उतार सका, बल्कि इसके विपरीत नरेन्द्रभाई मोदी लोगों के पेट में यह बात उतारने में सफल रहे
कि मायावती जी और दूसरी पार्टियों के पास गलत ढंग से जमा किया गया धन बक्सों में पडा
रह गया,
बेकार हो गया, इसीलिए वे नोटबंदी के खिलाफ रोना रो रहे हैं, एक मौका
मांग रहे हैं कि कैसे भी एक मौका मिल जाए तो वे अपने नोट बदलवा लें। खैर....इस नोटबंदी
के कई रंग हैं....लेकिन आम आदमी को हुई तकलीफों के बावजूद प्रधानमंत्री अपना खेल खेलने
में सफल रहे हैं। परन्तु, देश को इसका खामियाजा तो भुगतना
ही पडेगा। विपक्ष इस समय बेसुध, बेहोंश, औंधे मुंह पडा है, लेकिन सरकार को देर-सबेर कई तथ्य और सच्चाई
देश के सामने रखनी ही पडेगी।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें