आतंकवाद....अलगाववाद.....!
प्रधानमंत्री जी के 56 ईंच के सीने के बावजूद हमारे देश के माथे पर
आज भी आतंकवाद और अलगाववाद उसी प्रकार मंडरा रहा है, जिस प्रकार
सर्जिकल स्ट्राईक के पहले मंडरा रहा था। सर्जिकल स्ट्राईक तो कांग्रेस शासन में भी
हुई हैं,
लेकिन हमारे देश के जवान तब भी बडी संख्या में शहीद हो रहे थे
और पिछले तीन वर्षों में भी बडी संख्या में आतंकवाद की भेंट चढ गए हैं। भाजपा की देश-भक्ति
पर किसी प्रकार का संदेह करने की कोई गुंजाईश नहीं है, यह बात
दावे के साथ कही जा सकती है। संघ के स्वयंसेवकों को प्रारम्भ से ही देशभक्ति का पाठ
पढाया जाता है,
इसलिए वहां मन में और दृढ विश्वास पैदा होता है, लेकिन तब भी आतंकवादियों और अलगाववादियों की खुलकर पैरवी करने वाली महबूबा मुफ्ति
के साथ सरकार बनाने की रणनीति पर सवाल उठता है। हालांकि भाजपा का प्रयास एक बार वहां
सत्ता में आकर सबकुछ ठीक करने का रहा होगा, लेकिन
हालात जस के तस बने हुए हैं। क्या अभी साल-डेढ साल इस आतंकवाद को और झेलना होगा, कुछ जवानों को और कुर्बानी देनी होगी, ताकि
2019
के लोकसभा चुनावों से कुछ समय पहले 1971 में इंदिराजी द्वारा जैसी की गई वैसी कार्यवाही की जा सके, युद्ध या कोई बडा कदम.....ताकि जनता से किए गए सारे वादों, मुद्दों को पीछे छोडकर सिर्फ इस कार्यवाही के बूते 2019 के चुनावों में फिर से प्रचण्ड बहुमत हासिल किया जा सके.....? कुछ राजनीतिक चिंतकों-विश्लेषकों का ऐसा कयास लग रहा है। यदि ऐसी मानसिकता और रणनीति
है तो यह चिंता का विषय है, क्योंकि आम जनजीवन इस समय काफी
त्रस्त है। यदि नरेन्द्रभाई मोदी 2014 के अपने चुनावी अभियान के दौरान
दिए गए भाषणों का पुनरावलोकन करें और उन मुद्दों पर ईमानदारी से काम करें, तो जनता 2019
में उन्हें वैसे ही प्रचण्ड बहुमत दे देगी, क्योंकि विपक्ष तो औंधे मुंह बेसुध पडा है। लेकिन, यदि वे
जनता के साथ धोखा कर केवल पाकिस्तान को सबक सिखाने के नाम पर फिर से सत्ता में आने
का गंदा खेल खेलते हैं तो यह घटिया राजनीतिक सोच होगा। हमारे देश की जनता तो देशभक्ति
के सरूर में वोट दे भी देगी, किन्तु यह उसके साथ न्याय नहीं
होगा। आतंकवाद और अलगाववाद पर काबू पाने के लिए आज ही ठोस कदम उठाने की जरूरत है, उसके लिए 2019 के चुनावों का इंतजार करने की जरूरत नहीं है।
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