मंगलवार, 14 मई 2013

जैन कथा-साहित्य का रोमांच


श्री जैनशासन का कथा-विभाग आत्म-कल्याण की प्रेरणा के लिए ही है। लिखने वाले का, पढने वाले का और सुनने वाले का आत्म-कल्याण हो, इसी उद्देश्य से जीवन वृतान्त आदि से संबंधित कथाएं लिखी गई हैं। यह उद्देश्य कल्याण के अर्थी उपदेष्टा और श्रोता दोनों की आँखों के समक्ष सदैव रहना चाहिए। आत्म-कल्याण, यही जीवन का ध्येय और श्री जैनशासन इस ध्येय को प्राप्त करने का एकमात्र साधन है।इतना निश्चय यदि निराबाध रूप से यथार्थ स्वरूप में हो जाए, तो वस्तु को सही ढंग से पहचानना और उसका जीवन में उपयोग होना, यह सहज हो सकता है। आज जीवन के ध्येय का ठिकाना नहीं है। श्रद्धासम्पन्न समझदार आत्माएं बहुत ही कम और परभाव में मुग्ध आत्माएं बहुसंख्यक हैं। इसलिए अपनी आत्मा को कौनसी श्रेणी में रखना है, यही खास विचारणीय है।

अमुक आत्मा ने राज-पाट छोड दिया, अपार भवसुखों को लात मार दी और केवल आत्म-कल्याण के लिए ही संयम को स्वीकार कर वे महात्मा संयम पालन में सुधीर बने। ऐसे-ऐसे वृतान्त पढने या सुनने पर रोमांच होना चाहिए। उनके विचारों में ऐसे पुण्यात्माओं को देखते ही हाथ जुड जाना चाहिए। हमसे नहीं होता है, हमारा क्या होगा?’ ऐसा दुःख होना चाहिए। आत्म-कल्याण की सच्ची अभिलाषा सहज प्रकार से, ये सब भाव उत्पन्न कर देती है। और तब आत्मा वैराग्य की ओर, मुक्ति मार्ग की ओर अग्रसर हो जाती है। -आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें