श्रावक जैसे उत्तम कुल में तो
परस्पर कल्याण-भावना के झरने बहते रहने चाहिए। जो कोई पुण्यात्मा श्रावक-कुल को
प्राप्त करे, वह इस जीवन में ऐसा कर जाए कि जिससे उसका संसार
अत्यंत परिमित बन जाए, ऐसा श्रावक-कुल का वातावरण
होना चाहिए। श्रावक-कुल में रहे हुए नौकर,
इतर जाति के होते हुए
भी धर्म में रुचि वाले बन जाएं, ऐसे उत्तम कोटि के आचार एवं
विचार श्रावक-कुलों में प्रवर्तमान होने चाहिए।
श्रावकों के घर के पशुओं पर
भी उत्तम छाँया पडे, ऐसा श्रेष्ठ रहन-सहन उत्तम
श्रावकों का होना चाहिए। इसके साथ जब हम आज के श्रावक-कुलों की दशा का विचार करते
हैं, तब स्वाभाविक ग्लानि उत्पन्न हुए बिना नहीं रहती।
उत्तम गिने जाते श्रावक परिवारों में भी आज बिगाडा प्रविष्ट होता जा रहा है।
नामांकित कुलों में भी आज धर्म-संस्कार नष्ट होता जा रहा है। खाने-पीने की, पहनने-ओढने की और घुमने-फिरने आदि की स्वच्छंदता बढती जा
रही है, भक्ष्य-अभक्ष्य का विचार ही नहीं है, यह चिंता का विषय है। -आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी
महाराजा
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