शुक्रवार, 3 मई 2013

नागडों से बच के रहें


सज्जन की शान्ति, क्षमा और उसके समस्त गुण दुर्जनों को उल्टे ही लगते हैं और उल्टा देखने में ही वे खिलते हैं। शास्त्रकार कहते हैं कि ऐसों की तो उपेक्षा ही करनी चाहिए। कारण कि उनकी मुस्कुराहट में ही उनका नाश है। वे मुस्कुराए नहीं तो उनकी पहचान ही नहीं है। आक्रमण बल मिथ्या-दृष्टि का है, सम्यग्दृष्टि को यह बल नहीं है। सम्यग्दृष्टि का बल तो उसकी सज्जनता का है, नीति के पालन का है और धर्म के रक्षण का है।

सज्जन के सद्गुण को, दुर्जन दुर्गुण के रूप में न देखें तो सफल हो सकते हैं? सज्जन ब्रह्मचारी होगा तो दुर्जन उसे वीर्यहीन कहेगा। बोले नहीं तो बोबडा (गूंगा) कहेगा। दातार हो तो उडाऊ कहेगा। और सामने नहीं होगा तो सत्वहीन कहेगा। दुर्जन कहता है कि "सच्चा हो तो क्यों बोलता नहीं है?" उसको कहना चाहिए कि सच भी पागल के सामने नहीं कहा जाता। समझे उसको ही कहा जाता है न? बिना नशे के नशे वाला बन जाए उसको कहा जाता है? उसको कहने से उसकी हालत कैसी होती है? पाप को अच्छा मानना यह भयंकर नशा है। इसीलिए तो मूर्ख की पदवी दी जाती है। इसीलिए ही एक कवि को भी कहना पडा है कि-

"मूर्ख को ज्ञान कभी नहीं होता, देते हुए स्वयं का चला जाता है।" मूर्ख की यह पहचान है। धर्मी की, धर्म क्रिया की निन्दा करना, यह दुर्जन का लक्षण है।

पाखण्डी को जितने गुण उतने ही दर्गुण लगते हैं। अच्छी से अच्छी चीज भी अच्छे रूप में उसको नहीं लगती है। गुण को गुण के रूप में वह देखता ही नहीं है। इतना ही नहीं, बल्कि गुण भी उसको दोष रूप में दिखाई देते हैं। हितकर वस्तु भी हितकर रूप में उसके हृदय में नहीं उतरती है। कारण कि मिथ्यात्व के उदय से सब उल्टा ही दृष्टिगोचर होता है। मूर्खों की टोली के द्वारा एक बडे और अच्छे पुरुष को भी खराब कहलाने में कितनी देर लगती है? बाजार के अच्छे पुरुष को भी मूर्ख समाज में बदनाम करने में कितनी देर लगती है? चार नागे खडे होकर बोल दें, इतनी देर लगती है और इसीलिए यह कहावत भी है कि "नागडे से दूरी भली", "बादशाह भी दूर", किससे? नागों से! इसलिए ऐसों के साथ बात भी करनी या नाता-रिश्ता रखना, यह सब ही भयंकर है। (कहावत है "नागा रे नौपत वाजे, दो धडाका वत्ता वाजे", नागे के क्या फर्क पडता है, इज्जत, इज्जत वाले की जाती है। "नागे का नाक काटो तो सवा गज बढता है।") बचना और डरना इज्जत वाले को ही चाहिए।

व्यवहार कहता है कि व्यवहार करना भी पडे तो समान शील और कुल वाले के साथ ही रखना चाहिए, किन्तु दुःशीलियों, कुशीलियों के साथ व्यवहार नहीं रखना चाहिए। कारण कि उनके साथ व्यवहार रखने में बडा नुकसान है। उनके पास खडे रहने में, उनको घर बुलाने में और उनके घर जाने आदि म अर्थात् सब प्रकार से अच्छे मनुष्य ही कलंकित होते हैं। काले में दाग कहां से लगेगा? सफेद में जरा भी मैल हो तो भी दिखाई देता है। काला कहता है कि "मेरे में दाग है?" तो उत्तर में कहना ही पडेगा कि "भाई! दाग तो उजले-सफेद में होता है, कारण कि तू तो पूर्णतया काला ही है, यह याद रखना।"

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