गुरुवार, 9 मई 2013

शासन-द्वेषियों के लिए समभाव नहीं


अपराधी का भी चित्त से बुरा चिन्तन नहीं करना, यह ठीक है, उन बेचारों का भी कल्याण हो; लेकिन कल्याण-बुद्धि रखकर शासनद्वेषी को शिक्षा नहीं दी जाए, ऐसा नहीं। शासन को समर्पित बना हुआ मुनि शासन के द्वेषी को शिक्षा देने योग्य लगे तो शिक्षा दे। ऐसा होने पर भी उसका भला ही चिन्तन करे। शासन के विरोधी या शासन पर हमला करने वाले को शिक्षा देनी है, लेकिन शिक्षा देने वाले के मन में विरोधी के प्रति भी करुणा-भाव रहे, दुष्टता का भाव नहीं। प्रिय में प्रिय बालक को भी समय पर चपत मारी जाती है या नहीं? यह चपत मारने वाले माता-पिता क्या बच्चे का बुरा चिन्तन करते हैं? नहीं ही। दिखने में यह व्यवहार प्रतिकूल लगता है, किन्तु हृदय में प्रतिकूलता नहीं है। इसी प्रकार शासन-द्वेषी को शिक्षा न दी जाए, ऐसा नहीं है। अरे, वह मित्र न बनना हो तो न बने, परन्तु यदि दुश्मनी करते हुए रुक जाए, तब भी शासन के प्रेमी उसका तिरस्कार नहीं करें। समभाव स्वयं के लिए है, शासन पर हमला करने वालों के प्रति समभाव नहीं ही रखा जा सकता। -आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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