बुधवार, 15 मई 2013

आत्म-कल्याण की सच्ची भावना नहीं


आत्म-कल्याण की बातें तो बहुत करते हैं, किन्तु आत्म-कल्याण की सच्ची अभिलाषा बहुत ही कम लोगों में प्रकट हो पाती है और इसीलिए आज जैन समाज में वैराग्य के सामने आक्रमण का माहौल है। आत्म-कल्याण की सच्ची अभिलाषा हो, वहां वैराग्य का सत्कार हो या वैराग्य का तिरस्कार हो? आज तो कितने ही बेचारे कहते हैं कि अमुक महाराज बहुत खराब हैं, क्योंकि वे केवल वैराग्य की बातें करते हैं। ऐसा-ऐसा बोलने वाले कितने दया के पात्र हैं?

जैन कुल में जन्म पाकर भी ये बेचारे जैनत्व से वंचित हैं। ऐसे नामधारी जैन ही आज श्री जैन शासन के मूलभूत सिद्धान्तों पर आघात कर रहे हैं। कारण कि उनके मिथ्यात्व का उदय खूब ही मजबूत है। उनका संसार प्रगाढ है, इसीलिए ही उनको सच्चे वैराग्य के प्रति भी घृणा है। ऐसे लोग जैन कुल में जन्म लेकर भी तिर्यंच और नरक में जाने का काम करते हैं, इसका दुःख है। कैसे उनकी आत्मा का कल्याण होगा, इसका विचार आता है। -आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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