शुक्रवार, 24 मई 2013

वेशधारी वंचकों से सावधान


इस काल की महिमा यह है कि आज साधु वेशधारी वंचक शीथिलाचारी बहुसंख्यक हो गए हैं। जिस शासन के नाम पर ये मौज करते हैं, जिस शासन के नाम पर ये मान-सम्मान का उपभोग करते हैं, जिस शासन के नाम पर ये लोगों में पूजे जाते हैं और जिस शासन के नाम पर ये संसार में गुरु बने घूमते हैं; उसी शासन के लिए ये वंचक शत्रु का कार्य करते हैं। जिनकी ओर से शासन की प्रभावना की आशा कर सकते हैं, वे ही शासन की बदनामी करते हैं और शासन की बदनामी के कारणभूत होते हुए भी ये शासन के प्रति वफादार निर्दोष एवं पवित्र मुनियों पर झूठे कलंक लगाते हैं।

यद्यपि शासन समर्पित साधुओं को वस्तुतः व्यक्तिगत आक्रमणों की परवाह नहीं होती, परन्तु उन वंचक वेशधारियों के पाप से कतिपय आत्मा सन्मार्ग से च्युत हो जाएंगे और वे उन्मार्ग पर बढ जाएंगे। ऐसे समय में कल्याणार्थियों को तो अधिकाधिक सावधान होना चाहिए। अशक्ति के कारण आराधना कम-अधिक हो, उसकी वैसी चिन्ता नहीं है, परन्तु आराधना के मार्ग से भ्रष्ट न हो जाएं, इसकी तो पूर्ण सावधानी रखनी चाहिए। जहां तक हो सके वहां तक आराधना अधिक करने की भावना तो सम्यग्दृष्टि की होती ही है, परन्तु किसी वंचक के जाल में फंसकर मार्ग न चूक जाएं, यह विशेष संभालने योग्य है। -आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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