सोमवार, 26 मई 2014

संसार एक पागलखाना है !


आज बडे माने जाने वाले बहुत से लोगों की बुद्धि गिरवी रख दी गई है, इसलिए उनकी बातों में आप न फंसें। ये लोग स्वयं को बहुत विद्वान मानते हैं। ये तो हमको भी व्याख्यान सुनाते हैं और द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव देखने की हमको सलाह देते हैं। प्लेनों में उडने वाले, मोटरों में फिरने वाले, ट्रेनों में दौडधाम करने वाले हमको तो पागलखाने में भेजने योग्य लगते हैं, परन्तु इतना बडा पागलखाना लाना कहां से? इसलिए ही ज्ञानियों ने तो इस सारे जगत को ही पागलखाना कहा है।

भारतीय प्रजा का मूल गुण आज घायब हो गया है। पाप करने का भय चला गया है। पाप का भय तो आर्य स्वभाव है। पाप से न डरना अनार्य स्वभाव है। भगवान जैसे भगवान महावीरदेव भी गोशाला का भला न कर सके। गोशाला पर भगवान का कम उपकार नहीं था, तो भी गोशाला को उससे कोई लाभ नहीं हुआ। जीव की योग्यता न हो तो भगवान भी उस जीव का कुछ उपकार नहीं कर सकते तो फिर हमारा प्रभाव किसी पर न पडे तो इसमें क्या आश्चर्य? हमें तो स्व-पर कल्याण की भावना से अपनी साधना करते रहना है।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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