मनुष्य तो बहुत
कुछ कर सकता है, पर क्या करना चाहिए
और क्या नहीं करना चाहिए, उसका विवेकपूर्ण विचार उसे स्वयं
को करना चाहिए। जैन शासन की मान्यता है कि बाल्यकाल में ही संसार त्यागा जा सके तो
अत्यंत आनंद की बात और न त्यागा जा सके तो आत्मा ठगी गई समझना चाहिए। त्याग कर
जाने की प्रतीक्षा करता रहे और सिर पर श्वेत बाल उगने से पूर्व घर से निकल जाए, तब तो फिर भी
ठीक है कि इंसान संभल गया। श्वेत बाल चेतावनी देते हैं कि अब यहां से जाने की
तैयारी है। उस समय तक भी यदि कुछ न हो सके तो समझना चाहिए कि वह इंसान बेपरवाह, बेभान है और
अपने अगले जन्म की उसे कोई चिन्ता नहीं है।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी
महाराजा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें