शुक्रवार, 30 मई 2014

कर्त्तव्य से न चूकें


जो मुनियों को अपनी मर्जी के अनुसार नचाना चाहते हों, उन्हें सुधारने की आशा करना निरर्थक है। आत्म-कल्याण की हितैषी आत्माओं को भगवान श्री महावीर की आज्ञा को छोडकर, पागल और उन्मुक्तों की आज्ञा को मानने की मूर्खता करने जैसा है। मुनियों का कर्त्तव्य है कि वे आपमें जितने भी दोष हैं, उन्हें बतलाएं, दोष न भी हो, उनकी संभावना करके भी कहें। ऐसा कहने का एक मात्र उद्देश्य यही है कि आपमें कोई दुर्गुण हो तो वह दूर हो जाए और कोई दुर्गुण न हो तो वह आए नहीं, इस हेतु के लिए भयंकर शब्दों में भी कहना। झुण्ड बढाने की बुद्धि से कडवा हितकर जरूरी होते हुए भी नहीं कहने वाला कर्त्तव्य से चूकता है।

प्रवचन में बहुत लोग आएंगे तो हमारा मान-सम्मान बढेगा’, यह जो मान्यता है, वह पाप मान्यता है। भले ही भीड लाखों की हो, परन्तु अपना संयम जाता हो तो हमारे लिए भी खड्डा तैयार है। महापुरुषों को भी कर्मों ने नहीं छोडा है तो हमारा क्या अस्तित्त्व है? थोडा सा प्रमाद करने के कारण वे निगोद में चले जाते हैं, तो फिर हमारी क्या दशा हो सकती है? अतः सुरक्षा यही है कि आगम के विरुद्ध कोई भी कदम नहीं उठाना चाहिए। कदाचित् भगवान की आज्ञा को सम्पूर्णतया न पाल सके, परन्तु मान्यता में विशुद्धता अवश्य होनी चाहिए। शासन की रक्षा करने की बात तो अभी बहुत दूर है, परन्तु अपनी जात को बचाने के लिए आगम की आज्ञा को नुकसान पहुंचे, ऐसी सभी कार्यवाही से बचने के लिए सदैव सावधान रहने की आवश्यकता है।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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