भौतिक
सुख-समृद्धि के लिए धर्म करने वाले तो सचमुच धर्म के साथ धोखा कर रहे हैं। धर्म ने
जो त्याग करने के लिए कहा है, उसीकी प्राप्ति के लिए आप यदि धर्म
का आश्रय लेते हैं तो यह धर्म का दुरुपयोग ही माना जाएगा। आज बहुतायत में लोग ऐसा
कर रहे हैं, इसके परिणाम
अत्यंत घातक हैं। धर्म त्याग में है। भौतिक सुख-सुविधा-समृद्धि की आकांक्षा से आप
धर्म करेंगे तो एक बार वे वस्तुएं आपको मिल भी जाएंगी, किन्तु
अंततोगत्वा वे आपको दुर्गति में ही ले जाएंगी।
धर्म का विध्वंस
होता हो, मोक्षमार्ग की
क्रियाएं लुप्त होती हों अर्थात् सर्वज्ञ वीतराग परमात्मा द्वारा प्रणीत शुद्ध
सिद्धान्तों एवं उनके अर्थों का विप्लव होता हो, तब
शक्ति-सम्पन्न आत्मा को उसका निषेध करने के लिए वह सबकुछ करना चाहिए जो उसकी शक्ति
में हो, सामर्थ्य में
हो। जो मनुष्य शक्ति होने पर भी जैन शासन की रक्षा करने का प्रयास नहीं करते, वे इस संसार में
चिरकाल तक भटकते रहेंगे। आज निःसंगता का पता नहीं, शरीर की ममता का
पार नहीं, राग-द्वेष की
कोई सीमा नहीं, तो भी शासन सेवा
के समय, धर्म-रक्षा के
समय और सत्य-स्वरूप प्रकट
करने के समय समता, राग-द्वेष एवं शान्ति आदि की जो बातें करते हैं, वे भगवान के
शासन की दृष्टि से तो सचमुच दया के पात्र हैं। शक्ति होते हुए भी मूक बनकर धर्म का
पराभव देखने वाले और उस समय भी शान्ति की माला फिराने वाले सचमुच जैन शासन के महान
शत्रु हैं।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें