आप में बुद्धि
तो बहुत है, परन्तु पैसे के
प्रेम ने आपकी बुद्धि पर पर्दा डाल दिया है। आप जैसे लालचियों पर देवी-देवता खुश
हों तो समझ लेना चाहिए कि वे भी कर्म के आधीन हैं। वे भी आपकी पूजा-भक्ति के लालची
बने हैं। इसीलिए वे चोरों की सहायता करने निकल पडे हैं। अन्यथा तो वे भगवान की
अवगणना करने वालों पर खुश होते ही नहीं। पुण्य में सुख-मग्न हो जाए और पाप में रोए, उसे पुण्य-पाप
मानने वाला नहीं कहा जा सकता। पुण्य-पाप मानने वाला तो जहां तक संभव हो सके पाप
करता ही नहीं है और अपनी शक्ति के अनुसार देकर भी पुण्य किए बिना नहीं रहता। ऐसे
पुण्यशाली के पीछे अधिष्ठायक देव घूमा करते हैं और उनके (अधिष्ठायकों के) पीछे पडे
हुओं से ये अधिष्ठायक दूर-दूर भागते हैं।
इस देश में
पिछले साठ वर्षों में जो-जो घटनाएं हुई हैं और जो-जो उथल-पुथल हुई है, उन्हें देखने
वालों को धर्म-अधर्म और पुण्य-पाप की पूरी-पूरी समझ व श्रद्धा हो जानी चाहिए।
परन्तु आज के जीवों की बुद्धि इतनी कम हो गई है या कि उनकी बुद्धि पर पैसे और लालच
का ऐसा पर्दा पड गया है कि इस बात को समझने वाले बहुत विरल ही बचे हैं।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा
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