आज धर्म का माल
लेनेवाले थोडे हैं और माल देने वाले बहुत हो गए हैं। इसलिए धर्म का माल नीलाम हो
रहा है, ऐसा हमें अनुभव
होता है। माल अधिक हो और खपत कम हो, इस तरह हर किसी को धर्म चिपकाने के
प्रयत्न हो रहे हैं। ज्ञानी तो कहते हैं कि धर्म पात्र व्यक्ति को ही देना चाहिए, हर किसी को
नहीं। धर्म बहुत मंहगी वस्तु है। मांगने आने पर इसकी कीमत समझाकर देने जैसी यह चीज
है। परन्तु आजकल तो प्रायः धर्म का नीलाम हो रहा है। नीलाम में रुपये का माल पैसों
में बिकता है। ऐसी अधो दशा आज धर्म की हो रही है, इसका हमें अपार
दुःख है।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा
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