आज आप लोगों के
घरों में बुजुर्गों की स्थिति ऐसी हो गई है कि ‘जो कमावे वह
खावे और दूसरा मांगे तो मार खावे’। ऐसी स्थिति हो जाने के कारण ही
इस देश में वृद्धाश्रम या विधवाश्रम की बातें चलने लगी हैं। ऐसे आश्रम स्थापित हों, यह कोई गौरव की
बात नहीं है; अपितु उन बुजुर्गों
और विधवाओं के परिवारों के लिए तथा समाज और संस्कृति के लिए शर्म की बात है।
मर्यादा रहेगी
वहां तक धर्म रहेगा। महापुरुष भी किसी की निश्रा में रहते थे, उनकी आज्ञानुसार
चलते थे। आज चारों ओर मर्यादा का दीवाला निकलता जा रहा है। कोई किसी की सुनने या
मानने को तैयार नहीं। पुत्र माता-पिता की बात नहीं मानते और विद्यार्थी शिक्षक का
उपहास करते हैं। मर्यादा होने से घरों का संचालन भी ठीक तरह से होता है। मर्यादा
से रहित घरों में हमेशा झगडे हुआ करते हैं।
आपसे मेरा पहला
प्रश्न यह है कि आपका राग आपके माता-पिता पर अधिक है या पत्नी-बच्चों पर अधिक है? मां-बाप ने आपको
जन्म दिया है या पत्नी कहीं से लाई है? मां-बाप ने आपको पाला-पोषा है या
पत्नी ने? भगवान पर राग
होने का दावा करने वाले को मेरा यह महत्त्वपूर्ण प्रश्न है। योग की भूमिका में
माता-पिता की पूजा लिखी है, पत्नी-बच्चों की नहीं। मुझे तो ऐसा
महसूस होता है कि आज के लोगों को कम से कम कीमत की कोई चीज लगती हो तो वह उसके
मां-बाप हैं।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा
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