साधुत्व प्राप्त
करने के लिए दो प्रधान गुण होने चाहिए। एक तो संसार असार है, ऐसी दृढ श्रद्धा
और दूसरा गुण जो व्रत ग्रहण किया है, उसका प्राणों की बाजी लगाकर भी
पालन करना। ये दोनों बातें बराबर हों तो दूसरा कदाचित् कम-ज्यादा भी हो तो चलेगा।
आज परोपकार के
लिए गृहस्थाश्रम प्रारम्भ करने की मिथ्या और धूर्ततापूर्ण बातें करने वाले भी हैं।
उस परोपकार के पर्दे के पीछे तो भोग की भूख छिपी हुई है। यदि भोग का राग न हो तो
ऐसा बचाव करने की इच्छा ही नहीं होगी। ज्ञानियों का तो कथन है कि गृहस्थाश्रम दया
की आहुति दिलाने वाला है। डग-डग पर दया की आहुति देने पर ही गृहस्थाश्रम निभ सकता
है। किसी भी समय में परोपकार करने वालों की संख्या तो कम ही रहेगी। परोपकार तो दूर
रहा, परन्तु दूसरे के
प्रति अपकार किए बिना जीने का निर्णय करने वाले महात्मा भी कम ही मिलेंगे।
बिल्ली दूध का
बर्तन देखते ही तुरन्त उसके भीतर मुँह डालने लगती है, परन्तु वह लकडी
नहीं देखती। आप भी थोडे से सुख के दर्शन होते ही उसका उपभोग करने के लिए दौड पडते
हैं, परन्तु उस समय
आपको उस सुख के पीछे रहे हुए नरक-तीर्यंच के दुःख नहीं दिखते। सुख और सुख का साधन
धन जिसे प्रिय लगता है और उसका मन में कोई दुःख न हो, वह उत्तम मनुष्य
नहीं है। धन के पीछे छिपी नरक-तीर्यंच गति आपको दिखती ही नहीं; इसलिए ही आपका
धन आप से अनेक पाप करा रहा है।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी
महाराजा
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