जो धर्म की सुरक्षा करता है, धर्म उसकी रक्षा करता है। यह बात तो प्रायः सभी मानते
हैं, लेकिन आज धर्म के प्रति जैसा
आदरभाव चाहिए, वैसा है नहीं। यदि आप अपने आत्म-धर्म
की रक्षा करते तो आज जो दशा हो रही है, वैसी दशा नहीं होती। आप
अपने आत्म-धर्म की रक्षा करोगे तो, वह आप के आत्मा की
रक्षा करेगा। एक मात्र धर्म में ही दुःख-मुक्त कराने और सुख-प्राप्त कराने की
शक्ति है; फिर भी आज व्यक्ति धर्म के प्रति
कितना बेपरवाह है। व्यक्ति अपनी संतानों को धन-प्राप्ति व भोग का शिक्षण दिलाने
में सावधान है, किन्तु धर्म के शिक्षण के प्रति
उनका कोई रुझान नहीं है। ‘धर्मो रक्षति रक्षितः’, यह बोलते-मानते हैं, पर
सतही तौर पर यदि हृदय की गहराई से यह बात उठती तो आप अपनी संतानों को धर्म का
शिक्षण दिए बिना नहीं रहते।
आपकी संतानें बुद्धिहीन और रोगी बन
जाए, तो आपको दुःख होता है,
परन्तु आपकी संतानें
अनीतिवाली और अधर्मी बन जाए, तो उसका दुःख कितनों को होता है? संतानों के व्यावहारिक शिक्षण के लिए सभी प्रयत्न
करते हैं, उसके लिए चिंतित होते हैं, लेकिन संतानों के धार्मिक शिक्षण के लिए कितने लोग
उसी प्रकार से चिंतित होते हैं और प्रयास करते हैं? आपका
पुत्र अनीति वाला हो, अधर्मी हो, दूसरों
को ठगने में माहिर हो और खुद कहीं ठगा नहीं जाता हो, तो क्या आपको दुःख होता है? ऐसी स्थिति में आपको आनंद के बजाय दुःख होता हो और ‘अधर्मी बनकर इसने कुल को लजाया है’, ऐसा लगे तो ‘धर्मो
रक्षति रक्षितः’, इस बात में आपका दृढ विश्वास है, ऐसा कह सकते हैं। संतानों का अधर्म देखकर खेद पाने
वाले इस दुनिया में विरले लोग ही होते हैं।
प्राचीनकाल में आज से विपरीत
परिस्थिति थी। परम्परागत व्यवसाय का शिक्षण घर पर स्वाभाविक रूप से मिल जाता था और
धर्म के शिक्षण के प्रति विशेष ध्यान दिया जाता था। इस कारण कुटुम्ब में स्वाभाविक
सम्प रहता और अच्छे आचार-विचार रहते थे। आज बेटा बाप का नहीं रहा, भाई भाई का नहीं रहा, भाई-बहिन
का प्यार स्वार्थ की भेंट चढ गया, पति-पत्नी में अहम की
लडाई आम बात है। आर्य प्रजा का आज कितना अधःपतन हो गया है?
इस अधःपतन का कारण है परिवारों में से धर्म का शिक्षण चला गया। धर्म के प्रति
अनादर बढ गया। दुनियावी स्वार्थ-वृत्ति को बढाने वाला शिक्षण मुख्य हो गया है और
वैसे ही स्वार्थी संस्कार मिलने लगे हैं। दुनियावी स्वार्थ की लालसा बढने से अच्छे
आचार-विचारों का लगभग नाश हो गया है। ध्यान रहे कि हमें वर्तमान में जो पौद्गलिक
सामग्री का सुख मिला है,
वह पूर्व के पुण्योदय
के कारण मिला है। इस जीवन में हमने उससे पाप का उपार्जन किया और आत्म-धर्म की
रक्षा नहीं की तो अगला भव अत्यंत कष्ट से भरा होगा।-सूरिरामचन्द्र
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