आज शासन का नाश करने के दुष्ट प्रयत्न करने वाले
दम्भपूर्ण शान्ति की बातें करते हैं और भगवान श्री पार्श्वनाथ की स्तुति उदाहरण के
रूप में बताते हैं। ‘कमठ
ने क्रोध करके घोर कष्ट दिया और धरणेन्द्र ने भक्ति की। दोनों ने अपने-अपने योग्य
उचित काम किया। ऐसा होने पर भी पार्श्वनाथ भगवान ने तो उन दोनों पर समभाव रखा।’ बात सच्ची है। किन्तु, यह विचार स्वयं के लिए करने का है
या दूसरे के लिए? मुनि
स्वयं को यदि कोई गाली दे जाए और मार भी दे तो सहन करे। किन्तु सामने वाला शासन को
गाली दे तो? मुनि
देखा करेगा और समता को भजता रहेगा क्या? स्वयं की शक्ति से मुनि उसे रोकने का प्रयत्न करेगा। घर जलता हो, तब उसका
मालिक उसे देखता नहीं रहता। बाहर खडा-खडा मजे से ही जो देखता रहे तो वह घर का
मालिक नहीं, ऐसा
समझ लेना पडेगा।
अपराधी का भी चित्त से बुरा चिन्तन नहीं करना, यह ठीक है, उन बेचारों का भी कल्याण हो; लेकिन कल्याण-बुद्धि रखकर शासनद्वेषी को शिक्षा न दी
जाए, ऐसा नहीं। शासन को
समर्पित बना हुआ मुनि शासन के द्वेषी को शिक्षा देने योग्य लगे तो शिक्षा दे। ऐसा
होने पर भी उसका भला ही चिन्तन करे। देखने में प्रतिकूल व्यवहार करने वाले, हृदय से सामने वाले के प्रतिकूल
चिंतन करते हों, यह
मान्यता गलत है।
शासन के विरोधी या शासन पर हमला करने वाले को शिक्षा
देनी है, लेकिन शिक्षा देने वाले
के मन में विरोधी के प्रति भी करुणा-भाव तो है, दुष्टता का भाव तो नहीं ही है। प्रिय में प्रिय बालक
को भी समय पर चपत मारी जाती है या नहीं? यह चपत मारने वाले माता-पिता क्या बच्चे का बुरा चिन्तन करते हैं? नहीं ही। उल्टी चपत मारते हैं, वह भी बालक की भलाई के लिए ही
मारते हैं। दिखने में यह व्यवहार प्रतिकूल लगता है, किन्तु हृदय में प्रतिकूलता नहीं है।
इसी प्रकार शासन के द्वेषी को शिक्षा न दी जाए, ऐसा नहीं है। अरे, वह मित्र न बनना हो तो न बने, परन्तु यदि दुश्मनी करते हुए रुक
जाए, तब भी शासन के प्रेमी
उसका तिरस्कार नहीं करें। किन्तु शासन पर आक्रमण करता ही जाए तो उसका क्या होगा? ऐसे को बाहर भी निकाला जाता है।
पुत्र को सुधारने के लिए पिता उसे घर में प्रवेश नहीं
देने की कार्यवाही करता है तो क्या वह पिता अपने पुत्र का बुरा चिन्तन करने वाला
है? ऐसा नहीं ही कहा जाता।
अपितु यह कहा जाएगा कि पुत्र को सुधारने के लिए पिता ऐसा करता है। इससे स्पष्ट
होता है कि बुरा चिन्तन न करे, किन्तु
अवसर योग्य शिक्षा अवश्य दे। यह बात जो यहां भी समझ लो तो कितने ही आज समता आदि के
नाम से सन्मार्ग से दूर हो जाते हैं, वे दूर जाते हुए रुक जाएं। समभाव स्वयं के लिए है, शासन पर हमला करने वालों के प्रति समभाव नहीं ही रखा
जा सकता।-सूरिरामचन्द्र
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