रविवार, 3 जून 2012

मैं अकेला हूं, मेरा कोई नहीं

मैं अकेला हूं, मेरा कोई नहीं
संयोग का असर आप पर होता है या नहीं होता है?होता ही है! अतः घर नहीं छोडा जा सकता, लेकिन घर में अलग कमरे में अकेले बैठकर आप सोच सकते हैं कि एगोऽहं नत्थि मे कोइ’ ‘मैं अकेला हूं, मेरा कोई नहीं।कमरे से जब यह ध्वनि बाहर निकले तब कुटुम्ब-परिवार पूछे कि आप क्या बोल रहे हैं?’ तो आपको कहना चाहिए कि आप मेरे नहीं, मैं आपका नहीं। दुनियादारी की दृष्टि से, व्यवहार से आप मेरे हैं और मैं आपका हूं; लेकिन आत्मा की दृष्टि से आप कोई मेरे नहीं हो और मैं आपका कोई नहीं हूं।
जब पुत्र कहे कि पिताजी! मैं आपका बेटा हूं’, तो पुत्र को भी कहिए कि मैं तुम्हारा और तुम मेरे हो, यह बात व्यावहारिक दृष्टि से ठीक है, क्योंकि तुम मेरे यहां जन्में हो। लेकिन, मरना दोनों को है। हम पहले आए और तुम बाद में आए। मैं अपने पिताजी को छोडकर आया और यह सब संबंध बांधा। अब देखना है कि हम में से पहले कौन जाता है। यह पता नहीं कि हम मरकर कहां जाएंगे?मैं तुम्हारे साथ नहीं आ सकता और तुम मेरे साथ नहीं। मेरा-तुम्हारा तो लोक-व्यवहार का शब्द है, लेकिन आत्मा की भाषा में कोई किसी का नहीं, यह याद रखना।
दुनिया में कई बाप कहते हैं, ‘बेटे! तुम्हारे बिना मैं जी नहीं सकता’, लेकिन ऐसा बोलने वाले अनेक पिता, पुत्रों को छोड, श्मशान पहुंचाकर आ गए और आज आनंद से जी रहे हैं। मजे से खाते-पीते हैं, ऐसा है यह संसार! इस तरह तुम भी यहां आ गए हो तो जाने से पहले कुछ साध लो, धर्म की साधना करलो, मेरा-तेरा भूल जाओ।
यह तेरा और यह मेरा’, ऐसा कहना या मानना, यह मूर्खता है। इसमें से कुछ भी मेरा नहीं है और तुम्हारा भी नहीं है। इस नश्वर सांसारिक सम्पत्ति और सांसारिक संबंध में आसक्त होने जैसा कुछ भी नहीं है। क्योंकि यह दुनियावी सम्पत्ति शाश्वत काल तक टिकने वाली नहीं है। स्वजनों के संबंध भी शाश्वत नहीं हैं। मेरा-तुम्हारा करते-करते कितने ही चले गए,किसी की इच्छानुसार यहां कुछ होता नहीं है। इस तरह जीवन जीना चाहिए कि जिससे परिणामतः जन्म और मृत्यु से शाश्वत मुक्ति मिल जाए। आप जब ऐसा सब कहेंगे, तब पुत्र पूछे कि जन्म और मृत्यु की परम्परा बंद हो,इसके लिए जीवन कैसे जीएं?’तब आप कहिए कि श्री वीतराग परमात्मा के साधु ही तुमको सही-सच्चा रास्ता बताएंगे। मैं तुझे जैसा रास्ता चाहिए वैसा नहीं बता सकता, क्योंकि इतना जानने-मानने के बावजूद भी ममता-मोहान्धता के कारण संसार में फंसा हुआ हूं, लेकिन तुम न फंसो और जीवन को सफल करो, इसलिए पंच महाव्रत धारी हमारे साधु ही तुम्हें कल्याणकारी रास्ता बता पाएंगे। -आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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