गुरुवार, 7 जून 2012

विपत्ति और समाधि

विपत्ति तो आएगी जब आएगी, किन्तु विपत्ति आएगीऐसा खयाल मात्र भी कैसी विपत्ति को खडा कर देता है? व्यथित होने से या घबराने से अवश्य आने वाली विपत्ति कोई थोडे ही रुक सकती है? जब व्यथित होने से या घबराने से, विपत्ति का आवागमन रोक नहीं सकते तो फिर विपत्ति आने के पहले खेदित होना, दुःख का अनुभव करना,‘आह-आह क्या होगा?’ इस प्रकार करना, इससे फायदा क्या? ऐसी व्यथा और घबराहट दुःख में कुछ भी कमी नहीं कर सकती, अपितु दुःख में बढोतरी करने वाली ही होती है। विपत्ति आने वाली है, यह जानकर तो व्यक्ति को सावधान बन जाना चाहिए।
इस विपत्ति के समय आत्म-सम्पत्ति नष्ट न हो जाए, इसकी विशेष सावचेती रखनी चाहिए। आई हुई विपत्ति के निमित्त से आत्म-सम्पत्ति को विशेष रूप से प्रकट कर सकें, ऐसा प्रयत्न करना चाहिए। अचानक विपत्ति आती है तो तैयारी करने का समय नहीं रहता, किन्तु यदि पूर्व में ही उसकी सूचना मिल जाती है तो उस विपत्ति के समय समाधि रह सके, ऐसा हो सकता है। किन्तु, यह किसके लिए? विवेकी के लिए। अविवेकी तो विपत्ति आने वाली है, ऐसा जानकर ही व्यथा में अर्द्धमृतक जैसा हो जाता है। कितनी ही बार तो विपत्ति से भी, विपत्ति आएगी, यह विचार बडी विपत्तिरूप बन जाता है। कई बार तो ऐसे विचारों-विचारों में ही लोग पागल बन जाते हैं।
मतलब यह कि ऐसी व्यथा अथवा घबराहट इस लोक की और परलोक की, उभयदृष्टि से एकान्त हानिकारक ही है, इससे जगत के जीवमात्र के प्रति उपकार की भावना वाले ज्ञानी महापुरुष फरमाते हैं कि हित का उपाय तो यह है कि विपत्ति आनेवाली है, यह जानकर सद्विचारों में लीन बन जाएं और इस प्रकार आत्मा को सुस्थिर बना लें। विपत्ति के समय टिकने वाली समाधि तो दूसरी अनेकविध विपत्तियों के मूल का उच्छेदन कर देती है।
कर्माधीन आत्माओं के सब दिन एक समान नहीं होते हैं। कर्माधीन आत्मा का एक भी भव किसी न किसी प्रकार के दुःख के बिना ही बीत जाए, यह संभव ही नहीं है। विशेष पुण्यवान हो तो सुख का प्रमाण अधिक और विशेष पापी हो तो दुःख का प्रमाण अधिक। किन्तु, आदि से अंत तक एकान्त सुखमय जीवन कर्माधीन जीवों को प्राप्त होता ही नहीं है। क्या कोई एक भी मनुष्य कह सकता है कि मुझे मेरी जिन्दगी में दुःख का लवलेश भी अनुभव नहीं हुआ।ऐसा होने पर भी, दुःख में भी सुख का अनुभव कर सके, ऐसा मार्ग उपकारी महापुरुषों ने दिखाया है। श्री जिनशासन के रहस्य को पाए हुए परमोपकारी महापुरुषों के द्वारा दिखाए गए मार्ग का यथास्थितिरूप से सेवन किया जाए तो भयंकर दुःख के योग में भी आत्मिक सुख का सुन्दर से सुन्दर आस्वादन प्राप्त कर सकते हैं और साथ ही साथ दुःखमात्र की जड के समान कर्मसमूह की निर्जरा भी सिद्ध हो सकती है।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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