मंगलवार, 12 जून 2012

दीक्षा का विधान गरीबी-अमीरी का भेद नहीं करता

निर्धन को दीक्षा दी जाए? जरूर दी जाए। योग्य हो तो भीख मांग कर पेट भरने वाला हो, उसको भी दीक्षा दे सकते हैं। आज तो शीघ्रता से टीका-टिप्पणी करते हैं कि खाने को नहीं था, इसलिए दीक्षा ली।इस प्रकार बोलने वाले मोक्षमार्ग की आशातना करने वाले हैं। दरिद्रावस्था में भी पुण्यवान आत्मा को ही वैराग्य उत्पन्न होता है। भगवान का शासन केवल समृद्धिमन्तों के लिए ही है, ऐसा नहीं है।
गरीब या धनवान जो कोई कल्याण साधने की भावना वाला हो, उसके लिए भगवान का शासन है। दीक्षा धनवान को दी जाती है और निर्धन को नहीं दी जाए, ऐसा कोई नियम इस शासन में नहीं है। जिनमें वैराग्य उत्पन्न हुआ है, ऐसी कोई भी योग्य आत्मा को दीक्षा देने की यह शासन मना नहीं करता है। योग्यता की परीक्षा करने का विधान है, किन्तु उस परीक्षा में वह निर्धन है या धनवान है, यह देखने का विधान नहीं है। जिन-शासन में कहीं भी गरीबी-अमीरी का भेद नहीं है।
निर्धन आदमी दीक्षा ले,तब उसकी हंसी करने वाले अज्ञानी हैं। ये बेचारे ऐसे संसार-रसिक हैं कि उनको दूसरा कोई धर्म करे, उसकी अनुमोदना करने का भी खयाल नही आता और दीक्षित पुण्यवान की तथा मोक्षमार्ग की आशातना करने का सूझता है। निर्धन ने दीक्षा ली, तो खाने का नहीं था इसलिए दीक्षा ली, ऐसा कहना कितना मूर्खतापूर्ण है? एक वस्तु का भी त्याग करना मुश्किल होता है, वह जितना कठिन होता है, उसकी अपेक्षा भी वस्तु के ऊपर से ममता छोडना, यह बहुत कठिन है। दरिद्री में दरिद्री भी जब त्यागी होता है, तब वह भविष्य में धन प्राप्त करने आदि की इच्छा को छोडता है न?उसका अन्य कोई नहीं तो भी तृष्णा तो छोड दी है न? इसलिए तृष्णा छोडना यह भी क्या कम बात है?
दरिद्र अवस्था में भी स्वच्छन्दी जीवन जीने वाले बहुत होते हैं। जब कि दीक्षित होने वाले पुण्यवान तो स्वयं के जीवन को नियंत्रित बना देते हैं। भगवान के शासन को पाई हुई आत्माओं को यह वस्तु समझ में आए बिना नहीं रहती। प्रथम और पश्चिम में दोनों भाई निर्धन थे, किन्तु मुनि का योग मिला, धर्म सुना, धर्म अच्छा लगा, वैराग्य पाया और दीक्षा ली, इसमें खोटा क्या किया? आज तो ऐसे पैदा हुए हैं कि जिनको धर्म करने का नहीं है और कोई धर्म करता है तो वह उनको सहन नहीं होता है। घोर पापोदय के बिना ऐसा नहीं होता है। धर्म आपसे नहीं बनता है, तुम जानो, किन्तु धर्म करने वालों की अनुमोदना तो करो। अरे! यह भी नहीं बनता हो तो निन्दा करने के पाप में तो न पडो। समझ लो कि जो योग्य हो उसे निर्धन होने पर भी दीक्षा दी जा सकती है। धनवान को ही दीक्षा दी जाए, ऐसा कोई नियम इस शासन में नहीं है।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें