एक श्राविका के वहां मुनि वहोराने आए थे। वहां से गुजरते हुए भांड ने मुनि को मोदक
मिलते हुए देखा। तपस्वी महामुनि के तप के प्रभाव से किसी देव ने वहां सौनेये की वृष्टि
की। पास में रहनेवाली वैश्या ने दूर से यह दृश्य देखा। भांड को लड्डू चाहिए थे, वैश्या को सोनैये चाहिए थे। भांड साधु बना, वैश्या
श्राविका बनी। भाग्य के योग से इन दोनों की भेंट हो गई। जैसे को जैसे का योग मिला।
भांड ने पातरे निकालकर वैश्या के सामने रखे और कहा कि "भर दे"। वैश्या पातरे में लड्डू रखती जाए और ऊपर देखती जाए कि सोनैये गिरते हैं या नहीं? भांड समझ गया कि ये भी मेरे जैसी ही लगती है। वेश्या को पूछा कि तूं ऊपर क्या देखती
है?
वेश्या ने कहा कि सामने श्राविका के वहां मुनि आए तब दान देते
हुए उसके वहां सोनैया बरसे थे। मैं देखती हूं कि यहां अभी तक बरसे क्यों नहीं? भांड घबराया और बोला कि सुन!
वो साधु, वो श्राविका, थूं वेश्या मैं भांड,
थारा
मारा पाप मां,
पत्थर पडशे रांड।
अपन दोनों के पाप में कहीं पत्थर पडेंगे तो सिर फूट जाएंगे, इसलिए मुझे भागने दे। मान-पान की इच्छावाला साधु और पौद्गलिक लालसावाला श्रावक
ये भांड तथा वैश्या जैसे हैं।-सूरिरामचंद्र
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