विश्व में प्रत्येक
प्राणी शान्ति चाहता है, यह तो निःशंक सत्य है। अशान्ति कोई नहीं चाहता।
छोटे-बडे सभी केवल शान्ति चाहते हैं और शान्ति प्राप्त करने की अभिलाषा से सभी
यथासंभव प्रयत्न भी करते हैं, परन्तु शान्ति का अनुभव करने वाले विरले ही हैं। सबसे
पहली बात तो यह है कि ‘प्राणी जब तक स्वयं शान्ति-रूप न बन सके, तब तक उसे शान्ति
मिले कैसे?’ कहावत है कि ‘जैसा बोओगे, वैसा काटोगे’ और ‘जैसा करोगे, वैसा भरोगे’। चाहते तो हैं
शान्ति और काम ऐसे करते हैं जो अशान्ति देने वाले हों तो फिर कितने ही उपाय करने
पर भी शान्ति कैसे मिलेगी?
आज तो अनेकों को
वास्तविक शान्ति का अर्थ भी ज्ञात नहीं है। शान्ति ऐसी होनी चाहिए कि जिसके संयोग
से आत्मा शाश्वत सुख प्राप्त कर सके। हमें जो शान्ति चाहिए वह कार्य-साधक होनी
चाहिए। जिससे हमारा कार्य सिद्ध हो सके, ऐसी शान्ति चाहिए।
हम श्मशान-तुल्य शान्ति नहीं चाहते। हमें तो जीवित शान्ति चाहिए। जब तक जीवन
शान्तिमय नहीं बनता, तब तक सच्ची वस्तु की प्राप्ति नहीं हो सकती। इस
दृष्टि से यह विचारणीय है कि संसार में यदि सभी शान्ति के उपासक हैं तो आज कदम-कदम
पर अशान्ति का वातावरण क्यों है? प्रत्येक को कुछ न कुछ अशान्ति है। यदि हम अशान्ति के
उन कारणों का निवारण कर दें तो जीवन को शान्तिपूर्ण बना सकते हैं। जिस वस्तु की
हमें आवश्यकता है, उसे, उसके स्वरूप को और उसके साधनों को न सोचें और उसे
बिगाडने वाले साधनों को जीवन से दूर कर दें तो हमारा कार्य कैसे होगा? महापुरुषों ने तो
फरमाया है कि ‘यदि शान्ति चाहते हैं तो स्वयं शान्तिमय बनें।'
सामने वाला कैसा है, यह मत देखो; अपितु आप कैसे हैं, यह देखो। आप यदि
सचमुच शान्त बनोगे तो दूसरे में यदि वह योग्य होगा तो स्वतः शान्ति ला सकोगे। जीवन
को शान्तिमय बनाने के लिए महापुरुषों ने उपाय बताए हैं, उन उपायों का यदि
जीवन में अभ्यास किया जाए और उन पर आचरण किया जाए तो सच्ची शान्ति प्राप्त करना
असंभव नहीं है। महापुरुषों ने फरमाया है कि-
शिवमस्तु सर्वजगतः, परहितनिरता भवन्तु
भूतगणाः।
दोषाः प्रयान्तु
नाशं, सर्वत्र सुखी भवतु लोकः।।
‘समस्त विश्व का
कल्याण हो, सब प्राणी परहित रत हों, समस्त दोषों का नाश
हो और सर्वत्र लोक सुखी हो।’ इस तरह चार भागों में विभक्त यह भावना शान्ति चाहने
वालों में होनी ही चाहिए। संसार की कोई भी आत्मा हो, उसके साथ हमारा
संबंध हो या न हो, उससे लाभ मिले या हानि, पर हम उसके कल्याण
की ही कामना करें। जीवन को शान्तिमय बनाने का यह अमोघ उपाय है। इन विचारों में
रंगी, इन विचारों से ओतप्रोत आत्मा ही सच्ची शान्ति का साक्षात्कार कर सकती है।-सूरिरामचन्द्र
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