मित्रों कल शरदपूर्णिमा है ! रात 10 बजे से 12 बजे के मध्य अपनी छत पर या खुले
स्थान पर जहां चन्द्रमा की किरणें सीधी आपके बदन को स्पर्श कर सकें, ऐसे स्थान पर चन्द्रमा की ज्योत्सना का भरपूर आनंद लीजिए। खूब
हंसें-हंसाएं-गुदगुदाएं ! खीर बनाएं, खीर खाएं ! विज्ञान, मनोविज्ञान, आयुर्वेद और ज्योतिष शास्त्र में इसका बहुत महत्व है !
पूर्णिमा पूर्णता की प्रतीक है। पूर्णिमा के दिन जब आकाश में पूरा चन्द्रमा होता
है; ध्यान, कायोत्सर्ग, योग, प्राणायाम या ईश्वरीय उपासना की क्रियाएं विशेष लाभप्रद होती
हैं। इस दिन ब्रह्माण्ड में सतो गुण की प्रधानता रहती है। पूर्णिमा को जिस प्रकार चन्द्रमा
पूरी तरह खिला रहता है और ज्योत्सना व शीतलता से लबरेज रहता है, व्यक्ति का स्वयं का "औरा" आभामण्डल भी पूरी तरह विकसित होता
है। मस्तिष्क/दिमाग और चन्द्रमा का परस्पर गहरा संबंध है। मस्तिष्क अथवा दिमाग से हमारा
अभिप्राय है- व्यक्ति की चेतना, भावना
और कामना। चन्द्रमा की कलाएं न केवल पृथ्वी, जल, आकाश (तेजोवह तत्त्व), अग्नि व वायु को प्रभावित करती है, अपितु मानव मस्तिष्क को भी सीधे-सीधे प्रभावित करती है। चन्द्रमा के वैज्ञानिक, मनोवैज्ञानिक, परामनोवैज्ञानिक, ज्योतिषीय एवं गणितीय महत्त्व
से इंकार नहीं किया जा सकता है। पूर्णिमा के दिन "रैकी" व "हिलिंग" क्रियाओं का स्वास्थ्य की दृष्टि
से विशेष प्रभाव होता है। पूर्णिमा के दिन दिमाग भी हल्का रहता है और व्यक्ति के आभामण्डल
में उसकी प्रकृति व भावनाओं के अनुरूप तरंगें अनवरत रूप से बहती रहती हैं।
विभिन्न धर्म शास्त्रों में ऐसे कई सूत्र हैं और सौरमंडल में ऐसी कई सकारात्मक
सात्विक ऊर्जा तरंगें हैं, जिनके
माध्यम से सामान्य साधना द्वारा गंभीर से गंभीर बीमारियों का उपचार किया जा सकता है
और व्यक्ति प्रसन्नता पूर्वक अपना जीवन निर्वाह कर सकता है। जैन सूत्रों का विशेष विधि
से उच्चारण, जैन धर्म में "शक्रस्तव-णमोत्थुणं",
लोगस्स, भक्तामर
स्त्रोत, उव्वस्सग्गहर स्त्रोत, णमोकार मंत्र आदि कई ऐसी साधना विधियां हैं, जिनकी उपासना से उठने वाली तरंगें, सौरमंडल में यत्र-तत्र फैली हुई अरिहंतों की ऊर्जा तरंगों तक पहुंच सकती है, अरिहंतों की सेवा में लगे कई देवी-देवताओं और सिद्धियों को ये
तरंगें प्रभावित कर सकती हैं, जिनसे
हमारे कष्टों का निवारण संभव है। हमारी भाव-तरंगें और विचार-तरंगें उन्हें अपनी ओर
आकृष्ट करती हैं।
वेदों की ऋचाओं, उपनिषदों और पुराणों में
भी इस प्रकार के कई सूत्र हैं और उनकी साधना की कई प्रकार की विधियां हैं, यदि व्यक्ति निष्काम भाव से उनकी साधना करे तो वह कई प्रकार
की सिद्धियां प्राप्त कर सकता है।
समुद्र में होने वाला ज्वार-भाटा चन्द्रमा की कलाओं के आधार पर ही होता है। चन्द्रमा
पानी को अपनी ओर खींचता है। मानव शरीर और मस्तिष्क में भी पानी की मात्रा सर्वाधिक
होती है। इसी प्रकार गुरुत्वाकर्षण की शक्ति पूरी तरह वैज्ञानिक है। वह क्या है? किस प्रकार इस शक्ति से सूर्य-चन्द्र-पृथ्वी और सौरमंडल के सभी
ग्रह-नक्षत्र बंधे हुए हैं और परिभ्रमण करते हैं, इसे समझना चाहिए। यह भी कि मानव व अन्य जीवों पर इसका किस प्रकार प्रभाव होता है।
इसके मद्देनजर भी हम अपनी उपासना का क्रम बना सकते हैं। ब्रह्माण्ड में मौजूद ग्रह, उपग्रह, सौरमंडल
के तारे आदि सभी ऊर्जा तरंगें छोडते हैं, लेकिन इन सभी तरंगों में सर्वाधिक प्रभावशाली तरंगें चन्द्रमा की होती है, जो इंसान ही नहीं जानवरों के दिमाग को भी प्रभावित करती है।
ये तरंगें व्यक्ति के चेतन मन को ही नहीं, अवचेतन मन को भी प्रभावित करती है और कई-कई जन्मों के संस्कारों को व्यक्ति के
चेतन मन पर ला देती है। इसे सही या गलत दिशा देना व्यक्ति पर निर्भर करता है। यदि वह
शुभ भावों से युक्त होकर ध्यान, कायोत्सर्ग
अथवा ईश्वरीय उपासना करता है तो उसे सकारात्मक ऊर्जा तरंगें मिलती है, जिसके मनवांछित शुभ परिणाम प्राप्त होते हैं।
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