कैसी है यह न्याय व्यवस्था?
जहां अपराधी आराम करते हैं और गवाहों को जलील किया जाता है!
उदयपुर में 5 मार्च, 2009 को सेक्टर-4 से मुकेश
जैन का अपहरण हुआ। पीड़ित परिवार को रिपोर्ट लिखवाने के लिए थाने तक पहुंचाने वाले को
गवाही के लिए कभी पेशी का सम्मन भी नहीं भेजा गया और सीधा उसके घर पुलिसवाला एक हजार
रुपये का जमानती वारंट लेकर कल 22 अक्टूबर, 2016 को पहुंचता है और कहता है कि 24 अक्टूबर, 2016 को न्यायालय में उपस्थित होना
है और आप एक व्यक्ति को लाइए जो आपकी जमानत दे कि आप न्यायालय में हर हाल में उपस्थित
होंगे। गवाह को सदमा सा लगा कि मैंने पीड़ित परिवार को थाने तक पहुंचाकर वाकई क्या अपराध
किया है जो आज मुझ से जमानत मांग कर प्रताड़ित किया जा रहा है?
खास बात यह है कि इसी गवाह का बेटा भी इस मामले में गवाह है, जो सम्मन मिलने पर कोर्ट में गवाही के लिए अपनी नौकरी से छुट्टी
लेकर हाजिर हुआ तो उसकी गवाही दर्ज करने की बजाय उसे पेशी पर पेशी इस प्रकार चार-चार
पेशियां दे दी गई और उसकी गवाही दर्ज नहीं की गई और अंत में उसे कह दिया गया कि अब
आप जाइए, आपको तभी बुलाएंगे, जब आपकी गवाही दर्ज हो सकेगी। क्या यह हरेसमेंट इसलिए है कि
उसने कानून की मदद की?
अब आप सोच लीजिए कि कानून और पुलिस की मदद करनी चाहिए या नहीं? क्योंकि मैं तो गहरे सदमे में हूं और सोचता हूं कि अब ऐसे लफडों
में नहीं पडना, क्यों अपना बुढापा खराब करें? क्योंकि केस तो कई बरसों तक चलेंगे और अपराधी को सजा मिलेगी
या नहीं आपको जरूर प्रताडना झेलनी पडेगी।
कृपया और लोगों को भी शेयर करें ताकि कानून की मदद करने का नतीजा क्या होता है, लोग जान सकें।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें