धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ये चार
पुरुषार्थ कहे जाते हैं। इन चारों में पुरुषार्थ की अपेक्षा से समानता है, क्योंकि इन चारों
में प्रयत्न तो आवश्यक है। चारों में से एक की भी सिद्धि, बिना प्रयत्न के संभव
नहीं है, परन्तु संसार के अधिकतम लोग किस पुरुषार्थ के लिए
प्रयत्न करते हैं? अर्थ और काम के लिए ही न? धर्म और मोक्ष के
लिए कितने लोग उद्यमवंत रहते हैं और अर्थ तथा काम के लिए कितने लोग उद्यम करते हैं? मोक्ष के विषय में
तो आज अनेक मनुष्य कहते हैं कि ‘इसे कैसे मानें? है या नहीं? कदाचित गप्प न हो? क्या विश्वास? किसने देखा है मोक्ष? यह तो भोलेभाले
लोगों को फंसाने का एक जाल लगता है।’ जब मोक्ष के विषय
में ऐसी अनर्गल धारणा है तो फिर उसे प्राप्त करने की कामना तो रहेगी ही क्यों? और जब मोक्ष की
कामना उड गई तो फिर धर्म की भी क्या आवश्यकता?
इससे स्पष्ट है कि
संसार की कामना अधिकतर अर्थ और काम के लिए है। संसार का काफी बडा भाग अर्थ और काम
के लिए ही दौडधूप कर रहा है। लोग जीवन का सम्पूर्ण भाग इसीलिए नष्ट करते हैं, परन्तु यह अर्थ-काम
आत्मा के साथ कितने समय तक रहने वाले हैं? अन्त में जाने वाले
ही हैं, इसका विचार ही आज प्रायः लोग लगभग भूल बैठे हैं। जब
देह में असाध्य व्याधि उत्पन्न हो जाए और डॉक्टर हजारों रुपयों की फीस लेकर भी हाथ
झटक दें, उस समय आत्मा को अर्थ और काम की विपुल सामग्री भी
शान्ति दे सकती है क्या? नहीं दे सकती। आज अनेक लोग कहते हैं कि इस संसार में
अर्थ और काम के बिना चल ही नहीं सकता, अतः उनके त्याग की
बात करना तो मूर्खता है। यह भावना इस युग में लगभग रूढ बन गई है। इसलिए लोगों का
धर्म की ओर रुझान नहींवत् है।
धर्म और पौद्गलिक
सुख के त्याग की बात करने वाले आज पागल समझे जाते हैं, परन्तु परम उपकारी
शास्त्रकार महर्षियों ने गहन खोज कर के कहा है कि ‘अर्थ और काम जीवन
में शरण-स्वरूप हैं ही नहीं।’ मान लीजिए कि अर्थ और काम की सामग्री के अम्बार लगे
हों, जो मांगें वह मिल सके इतने साधन उपलब्ध हों, अर्थ की अथवा भोग की
कमी न हो और नौकर-चाकर, स्नेही-संबंधी भी अनुकूल हों; ऐसे सुखी मनुष्य को
भी अन्तिम अवस्था में जब वह मृत्यु-शैय्या पर पडा हो, इन समस्त वस्तुओं
में से कौनसी वस्तु शान्ति प्रदान करने में समर्थ है? कहना पडेगा कि एक भी
वस्तु ऐसी नहीं है। सब पास में खडे हों फिर भी वे कर क्या सकते हैं? देह में तीव्र वेदना
उत्पन्न होने पर करना क्या? समस्त साधन-सामग्री उल्टी उस समय अधिक व्याकुलता
उत्पन्न करती है। ऐसे विकट अंतिम समय में जीवन में शान्ति प्रदान करने वाली वस्तु
कौनसी है? अर्थ और काम या धर्म? इस विषय में ही
गहनता पूर्वक चिन्तन करने की आज आवश्यकता है।-सूरिरामचन्द्र
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