संसार की स्वार्थ परायणता पर
विचार करो। राग-द्वेष और अज्ञान से घिरे हुए तथा उसी कारण से अर्थ और काम में
अतिलुब्ध बनी हुई आत्माएं, अपने ही पिता, मां, पत्नी, पुत्र या भाई के वध जैसा भयंकर कोटि का विचार करे, निर्णय करे या उसकी पालना करे तो भी इसमें आश्चर्य जैसी कोई
बात नहीं है। अर्थ और काम की प्राप्ति में ही स्वयं का कल्याण मानकर बैठे हुए
लोगों को, स्वयं के कल्पित कल्याण की साधना के लिए कितनी ही
बार तो भयंकर में भयंकर कोटि के भी दुष्कृत्यों का आचरण करते हुए विचार नहीं आता
है। ऐसी आत्माओं को स्वयं के किंचित स्वार्थ के लिए सामने वाले की पूरी जिन्दगी भी
तुच्छ लगती है। स्वयं के क्षुद्र स्वार्थ के लिए दूसरों के प्राणों का हरण करते
हुए भी, किंचित् भी क्षुब्ध नहीं होने वाली आत्माएं इस युग
में बहुत हैं। पूर्व के पुण्य योग से मिली हुई सामग्री का उपयोग वे लोग इस भव में
दूसरे जीवों का संहार करने में करते हैं। किन्तु, वे लोग अपने भविष्य को भूल जाते हैं। -आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी
महाराजा
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