अकारण शत्रुता
आत्मभाव के बिना पौद्गलिक
सुखों की लालसा में पडी आत्माएं एकान्ततः कल्याण करने वाली बातों का उपदेश देने
वाले महात्मा पुरुषों का भी अवसर पाकर तिरस्कार करने से चूकती नहीं है। कारण कि
उनको सच्चे महात्माओं का महात्मापन खटकता रहता है। दुर्जन लोग सज्जन पुरुषों के
अकारण ही शत्रु होते हैं। कारण कि सज्जन पुरुषों द्वारा आचरण की जाती
सत्प्रवृत्तियां दुर्जन लोगों को संसार के सामने आचरण से स्वतः दुर्जनरूप घोषित कर
देती है और इसीलिए सज्जन पुरुष दुर्जनों को खटकते हैं और वे अपने मन में सज्जनों
के प्रति वैर पालते हैं।
सच्ची बात यह है कि ‘पौद्गलिक स्वार्थ की रसिकता ही भयंकर है’। पौद्गलिक स्वार्थ की प्रीति ज्यों-ज्यों बढती जाती है, त्यों-त्यों सद्वृत्ति और सदाचार दोनों का नाश होता जाता
है। पौद्गलिक स्वार्थ की अत्यंत प्रीति आदमी को आदमी नहीं रहने देती, अपितु शैतान बना देती है। इसलिए आत्म-कल्याण की अभिलाषी
आत्माओं को स्वयं में रही हुई पौद्गलिक स्वार्थवृत्ति को जडमूल से ही समाप्त करने
के लिए प्रयत्नशील बनना चाहिए। -आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा
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