दुनिया को पौद्गलिक वस्तुओं
का वियोग होता है तो दुःख होता है। वियोग का दुःख क्यों? संयोग में सुख माना इसीलिए न? संयोग ही न होता तो वियोग कैसे होता?
कितनी ही बार पौद्गलिक
वस्तुओं का वियोग दुःख उत्पन्न करता है तो कितनी ही बार पौद्गलिक वस्तुओं का संयोग
दुःख उत्पन्न करता है। मनपसंद चला जाए तो भी दुःख और मनपसंद मिले तो भी दुःख।
इसलिए वस्तुतः सुख पौद्गलिक वस्तुओं के न वियोग में है और न संयोग में। पौद्गलिक
वस्तुओं का स्वभाव स्थिर रहने का नहीं है। सडन,
गलन, पतन पुद्गल का स्वभाव है, इसलिए इसके योग में सुख की कल्पना,
यही दुःख की जड है।
आत्मा इसी में लीन रहने के कारण दुर्गति में डूब जाती है। जो वस्तु दुःख की
हेतुभूत होती है, उसको सुखरूप मानना मूर्खता
है। -आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा
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