क्या सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र
इन तीनों को सचमुच आप रत्न-तुल्य मानते हैं? रत्न किसे कहते हैं? सच्चा रत्न तो वह होता है, जिसकी प्राप्ति से समस्त मन-वांछित कार्यों की सिद्धि का साधन प्राप्त हो जाए।
समस्त मन-वांछित कार्यों की सिद्धि के साधन रूप रत्न के समान दूसरी कोई पौद्गलिक
वस्तु नहीं है। इसीलिए सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यग्चारित्र; इस त्रिपुटी को रत्नत्रयी की उपमा दी गई है। संसार के चिन्तामणि आदि रत्न
द्रव्य-रत्न कहलाते हैं और ये सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र भाव-रत्न हैं। सद्भाग्य हो तो द्रव्य-रत्नों से
मनोवांछित कार्य पूर्ण होते हैं, परन्तु वह तो अधिक से अधिक एक
भव तक मनोकामना पूर्ण कर सकते हैं, जबकि भाव-रत्न तो जीव की मनोकामना इस तरह पूर्ण करते हैं कि जिससे जीव की कोई
कामना शेष रहे ही नहीं। भाव-रत्न जिन्हें प्राप्त हो जाएं, ऐसे भाग्यवानों की बात तो दूर रही, परन्तु भाव-रत्नों के स्वरूप का ही जिन्हें सही ज्ञान हो जाए, उनका हृदय भी फिर कभी द्रव्य-रत्नों से संतुष्ट नहीं हो सकेगा।
उनके पास चाहे कितने ही द्रव्य-रत्न क्यों न हों, उनकी दृष्टि तो भाव-रत्नों पर ही जमी रहेगी और वे जीव भाव-रत्न प्राप्त करने
के लिए यथासंभव प्रयत्न किए बिना भी नहीं रहेंगे। द्रव्य-रत्नों में यह शक्ति नहीं
है कि वे अपनी सामर्थ्य से भाव-रत्न प्राप्त करा सकें; लेकिन भाव-रत्नों में ऐसा सामर्थ्य जरूर है कि वे जीव को द्रव्य-रत्न प्राप्ति
में सहायक हो सकते हैं। भाव-रत्नों के इतने उत्तम स्वरूप का जिन्हें सच्चा ध्यान
हो जाए, उन्हें बहुमूल्य द्रव्य-रत्न भी
भाव-रत्नों के समक्ष तो तुच्छ ही लगेंगे न? जब बहुमूल्य माने जाने वाले द्रव्य-रत्न भी तुच्छ लगें तो रुपये पैसे, घर, सोना, चांदी आदि तो उनके सामने ठहर ही नहीं सकेंगे। इसलिए समस्त मनोवांछितों की
सिद्धि के साधन केवल ये रत्न-त्रयी ही हैं।
आपके हृदय में यह बात भलीभाँति जम जानी चाहिए कि रत्नत्रयी के अतिरिक्त कोई भी
बहुमूल्य रत्न हमारी मनोवांछित कामना पूर्ण नहीं कर सकते। रत्नत्रयी की प्राप्ति
से समस्त मनोवांछित कार्यों की ऐसी सिद्धि हो जाए कि हमारी आत्मा कामना से भी
सर्वथा रहित बन जाए। आप कामचलाऊ चाहे जैसे प्रयत्न करते हैं, पर आपके हृदय में सदा के लिए सम्यग्दर्शनादि तीन रत्नों को उपार्जित करने की
ही लगन लगी हुई है या नहीं? क्या आपके हृदय की गहराई से कभी
यह हूक उठती है कि मुझे रत्नत्रयी की प्राप्ति नहीं होने से ही यह सब आधि, व्याधि और उपाधियां हैं। अतः कब मुझे रत्नत्रयी प्राप्त हो, ताकि मैं समस्त
उपाधियों से मुक्त हो सकूं? आप रत्नत्रयी के विषय में नित्य
बात करते हैं, परन्तु इनके विषय में कभी आपने
गंभीरता पूर्वक अंतःकरण से विचार किया है? यदि आपने इनके विषय में सोचा होता और निर्णय पर पहुंच गए होते, तो आप इनको
प्राप्त किए बिना चैन से नहीं बैठते। -आचार्यश्री विजय
रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा
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