गुरुवार, 17 अक्तूबर 2013

आपके चित्त का झुकाव किस ओर है?


आपके चित्त का झुकाव, रुझान संसार की ओर है अथवा मुक्ति की ओर? सुश्रावक के चित्त का रुझान तो मुक्ति की ओर ही होता है। सम्यग्दृष्टि आत्मा की देह यदि संसार में होती है तो भी उसका हृदय प्रायः मोक्ष में होता है। यह बात आप जानते हैं क्या? चित्त का रुझान यदि सुधर जाए तो अविरति की क्रियाओं को भी निर्जराकारी बनाई जा सकती है। यदि चित्त का रुझान केवल संसार की ओर ही हो तो मोक्ष-साधक क्रियाएं भी निर्जराकारी होने की बजाय बंधक हो जाती हैं।

चित्त का रुझान सुधरने पर धर्म-क्रिया करने से तो मोक्ष की भावना उत्पन्न होती ही है, परन्तु सांसारिक क्रियाओं को करते हुए भी मोक्ष की भावना ही उत्पन्न होती है। अतः सर्व प्रथम आपको यह निर्णय कर लेना चाहिए कि आपके चित्त का रुझान किस ओर है? आपके चित्त का रुझान संसार की ओर न होकर मुक्ति की ओर हो, ऐसा आपको प्रयत्न करना चाहिए। आप सब यदि स्वाभाविक जैनाचारों के प्रति भी अनुरक्त हो जाएं तो भी अनेक पापों से बच जाएं और आपका सुन्दर आचरण भगवान के शासन की प्रभावना करने वाला सिद्ध हो जाए। भगवान श्री जिनेश्वर देवों द्वारा फरमाए हुए मोक्ष-साधक अनुष्ठानों का सविधि आचरण भी श्री जैन शासन की प्रभावना का एक कारण है। जैन कुल में स्वाभाविक माने जाने वाले आचारों को देखकर अजैनों को भी उनकी प्रशंसा करनी पडती है। आज तो अनेक जैन कुलों ने अनेक जैनाचार खो दिए हैं।

जैनाचार खो देने के कारण ही जैन कुल में उत्पन्न होने वाली आत्माओं में जो सुसंस्कार आने चाहिए, वे दुर्लभ हो गए हैं। उत्तम आचरण के संस्कार सद्धर्म प्राप्ति में अत्यंत सहायक हो सकते हैं। हमें सोचना चाहिए कि क्या हम अपने लिए करने योग्य कर्तव्य के प्रति सजग हैं? यदि उसमें कोई कमी हो तो उस कमी को दूर करने का विचार भी हमें अवश्य करना चाहिए। जब तक आप अपना चित्त नहीं सुधारेंगे, तब तक आप किसी काम में सफल नहीं होंगे। चित्त यदि सुधर जाए और जिस पर लक्ष्मी की कृपा है, वह सोच ले तो अपनी लक्ष्मी से समस्त गांव को अपना बना सकता है, क्योंकि दान में इस लोक और परलोक दोनों को सुधारने की महान शक्ति है। सबको अपनी लक्ष्मी से प्रसन्न करने का उपाय धनवानों के पास है; परन्तु दूसरों की प्रसन्नता से स्वयं प्रसन्न हो, ऐसे हृदय की आवश्यकता है।

जिन पर लक्ष्मी की कृपा है, ऐसे पुण्यशाली यदि उदार एवं विवेकी हों तो वे ऐसा कर सकते हैं कि सारा गांव उन पर प्रसन्न होकर उनके एवं देव, गुरु, धर्म के गुण गाए; परन्तु जिन पर लक्ष्मी की कृपा नहीं है, वे समस्त गांव के लोगों को किस प्रकार प्रसन्न कर सकते हैं? बिना सम्पत्ति वालों का जीवन, उनका व्यवहार यदि सदाचारी एवं परोपकारी हो तो वे लक्ष्मी के बिना भी लोगों को प्रसन्न कर सकते हैं। -आचार्यश्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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