सोमवार, 28 अक्तूबर 2013

श्री जिनेश्वर भगवान का स्मरण


साधु को देखकर संयम का ध्यान आता है अथवा नहीं? आपको यह लगता है या नहीं कि मेरा जीवन असंयमित है; जबकि  संयम ही अपनाने योग्य है; ऐसा प्रभाव, ऐसा चिन्तन संयमी के संयम को देखकर अथवा साधुवेश के दर्शन से होता है? संयम तो आत्मा की वस्तु है। वह चर्म-चक्षुओं से नहीं दिखाई देती। यदि संयम चर्म-चक्षुओं से दिखसकता हो, तो जिसने साधु का वेश धारण नहीं किया, जो गृहस्थ के वेश में है और कल्पना करो कि उसमें संयम के भाव आ गए हैं और जो सचमुच भाव-साधु है, उसे नेत्रों से देखने मात्र से वह संयम दृष्टिगोचर होना चाहिए न? लेकिन, ऐसा नहीं होता। संयम चर्म-चक्षुओं से नहीं दीखता।

इसी तरह साधुवेश धारी मनुष्य का असंयम चर्म-चक्षुओं से दिखाई देता है? नहीं! चर्म-चक्षुओं से देखने पर तो यही दृष्टिगोचर होता है कि उसमें संयम है, यही कल्पना होती है। साधु-वेशधारी को देखने से उसके संयम की जो कल्पना होती है, वह क्यों होती है? वह साधु-वेशधारी कहता है कि मुझ में संयम है, इसलिए उसमें संयम होने की कल्पना होती है क्या? नहीं, यह बात नहीं है। अपने हृदय में यह बात जम चुकी है, दृढ हो चुकी है कि यह साधु-वेश संयम का प्रतीक है।इसलिए साधु-वेशधारी को देखते ही यदि वह कुछ भी न कहे, कुछ भी न करे तो भी उसमें संयम का विचार उत्पन्न हो ही जाता है। और इससे हमारे आचरण, व्यवहार व सोच में परिवर्तन आता है, हम शुभता की ओर बढते हैं, आत्मा में निर्मलता आती है।

ठीक इसी प्रकार श्रीजिनेश्वर भगवान की मूर्ति के दर्शन से उनकी गुण-सम्पन्नता एवं दोष-विहीनता का ध्यान आता है। भगवान ने धर्म-तीर्थ की स्थापना कर के संसार के जीवों पर महान् उपकार किया है, यह भी हमें उनके दर्शनों से स्मरण हो आता है। श्री जिनेश्वर भगवान की तीर्थंकर नामकर्म की निकाचना करते समय समस्त जीवों को शासन-प्रेमी बनाने की जो उत्कट भावना थी, उसकी स्मृति ताजी हो आती है। यह सब ध्यान में आते ही आत्मा पुलकित हो जाती है, जिससे हृदय एवं मस्तक झुक जाते हैं। क्या आप ऐसा महसूस करते हैं, उन विचारों में खो जाते हैं या प्रभु के समक्ष अपने घर का रोना रोने बैठ जाते हैं, उनसे भौतिक सुख-समृद्धि की याचना करने लग जाते हैं? अरे, वे तो स्वयं सारी भौतिक सुख-समृद्धि को ठोकर मारकर निकले हैं, आप यह क्यों नहीं समझते और सोचते हैं। जरा अपने सोचने की दिशा बदलिए और श्री जिनेश्वर भगवान के दर्शन के समय उनके जीवन और स्वरूप का चिन्तन करिए। फिर देखिए कि आपका मन कितना प्रसन्न, कितना आल्हादित होता है? श्री जिनमूर्ति श्री जिनेश्वर भगवान का स्मरण कराने वाला एक आलम्बन है। मूर्ति के दर्शन से भगवान की स्मृति आती है, उनकी दोष-विहीनता, गुण-युक्तता एवं परोपकारिता की स्तुति से हम आत्म-कल्याण के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। -आचार्यश्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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