मंगलवार, 22 अक्तूबर 2013

उदार धनिक ही प्रशंसनीय


सभी धनवान दुःखी और दया के पात्र ही होते हों, ऐसी बात नहीं है। ऐसे-ऐसे धनिक भी हैं, जिनकी प्रशंसा महान् मुनियों को भी करनी पडती है, परन्तु उन धनवानों की श्रेष्ठता का प्रमुख कारण उनका विवेक है। उदार धनिक ही प्रशंसनीय होते हैं। लक्ष्मी के वशीभूत होने वालों में उदारता नहीं होती। लक्ष्मी को असार समझने वाला मनुष्य यदि दानान्तराय वाला भी होगा तो भी वह उदारता का अनुरागी अवश्य होगा। वह उदारता का रागी बनकर उदार बनने का प्रयत्न अवश्य करेगा। वस्तुतः वे धनवान ही श्रेष्ठ होते हैं, जो लक्ष्मी को असार मानते हैं।

लक्ष्मी को सारभूत मानने वाले निर्धन तो दुःखी होते ही हैं, परन्तु उसे सारभूत मानने वाले धनी भी सदा दुःखी ही रहते हैं। क्या आप किसी भी तरह यह बात अपने हृदय में अंकित कर सकेंगे? आप यह न सोचें कि हमें इस बात का इल्म ही नहीं है कि धन के सदुपयोग से धनवान लोग भी कितनी ही तरह से अपना एवं दूसरों का कल्याण कर सकते हैं। ऐसे-ऐसे शासन-प्रेमी जैन हैं जो जैन शासन को परम तारणहार मानते हैं और अपनी समस्त शक्ति एवं सामग्री का उपयोग श्री जैन शासन की आराधना में ही करना चाहते हैं और जैन शासन की आराधना में लगी हुई शक्ति व सामग्री को ही वास्तविक रूप से उपयोगी व सारभूत मानते हैं; ऐसे धनवान तो निःसंदेह प्रशंसनीय हैं ही। ऐसे धनवान तो जैन शासन के आराधक बनने के साथ अत्यंत प्रभावशाली बन जाते हैं और समय आने पर वे जैन शासन के परम रक्षक भी सिद्ध होते हैं। इस तरह प्रायः सभी धनी दुःखी या दया के पात्र नहीं होते। ये धनी प्रशंसनीय एवं उत्तम कब बन सकते हैं? जब वे धन को असार समझने लगें, पाप स्वरूप मानने लगें, त्याज्य मानने लगें और यह भी मानने लगें कि यदि धन के प्रति सावधानी नहीं रखी तो भटक जाएंगे।

इसलिए जो धनवान लोग अपने धन का मुख्यतया ऐसा उपयोग करना चाहते हों, जिससे संसार त्याग करना भी सुलभ हो, वे भी जैन शासन के आराधक एवं रक्षक बन सकते हैं और महान प्रभावशाली हो सकते हैं। ऐसे मनुष्य अपने धन से दुःखी न होकर सुखी ही होते हैं, क्योंकि वे धन के वशीभूत नहीं होते, अपितु धन उनके वशीभूत होता है। आप लक्ष्मी के वश में न हों तो आप पर भरोसा किया जा सकता है; परन्तु जो लोग लक्ष्मी के वश में होते हैं, वे तो भागीदार को अँधेरे में रखकर अवसर पाकर उसका भाग हजम कर डालने की अभिलाषा करते हैं। वे तो अत्यंत कपटी, छली होते हैं। धोला-काला धन ऐसे ही लोग पैदा करते हैं। वे अपने सहोदर से भी सावधान रहते हैं और अपना धन गुप्त रखने की कोशिश करते हैं। यदि अवसर प्राप्त हो जाए तो ऐसे मनुष्य भयंकर छल करने में भी नहीं हिचकिचाते। उनकी मनोवृत्ति ऐसी ही होती है, अतः उनका हृदय सदा छल ही सोचता है। -आचार्यश्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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