फेसबुक पर विश्वबंधु सोसायटी, पालडी, अहमदाबाद निवासी मात्र पांच वर्षीय बालक वत्सल दोशी के मासक्षमण की तपस्या
का समाचार पढकर हृदय अहोभाव से भर गया, तप की अनुमोदना में और
धर्म की प्रभावना में अंतःकरण से मैं नतमष्तक हो गया।
किन्तु अगले ही क्षण मुझे भय लगने लगा कि कहीं जस्मीन शाह जैसे दुराचारी, सिरफिरे लोग वत्सल के माता-पिता और धर्म-गुरुओं के खिलाफ जुवेनाइल जस्टिस एक्ट
में मुकदमा नहीं ठोक दे और इनकी गिरफ्तारी के लिए वारंट निकलवाकर, इन्हें जेल नहीं भेज दे! क्योंकि बालदीक्षा यदि बच्चों पर अत्याचार है तो उससे
अधिक बर्बरतापूर्ण अत्याचार यह है कि एक पांच वर्षीय बच्चे को एक माह तक भूखा रखा जा
रहा है, जिसके परिणाम स्वरूप उस बच्चे की मृत्यु भी हो सकती है।
इस प्रकार इस तपस्या के खिलाफ तो हत्या के प्रयासों का मुकदमा भी बनता है। इसमें बच्चे
के माता-पिता, परिवारजन और पचक्खाण करवाने वाले गुरुभगवंत आदि
सभी फंसते हैं, अब क्या होगा? जस्मीन को
तो यह सब मालूम ही होगा, क्योंकि भले ही उस बच्चे की आत्मा पर
एक तिथि या दो तिथि का लेबल चिपका हुआ नहीं है, किन्तु यह परिवार
है तो उन्हीं का अनुयायी जो अपनी ईर्ष्या व द्वेष की आग बुझाने के लिए जस्मीन जैसे
लोगों का इस्तेमाल कर रहे हैं। जस्मीन ने अब तक मुकदमा भी इसीलिए नहीं किया है। अच्छा
है।
यह बात द्वेष में अंधे लोगों को समझ में आए या न आए, लेकिन तपस्या की यह घटना मामूली नहीं है। बहुत ही स्तुत्य, बहुत ही अद्भुत और वंदनीय है। मैं यदि अहमदाबाद में होता तो निश्चित ही उस
तपस्वी बालक आत्मा को नमन करने और उसके तप की अनुमोदना, बहुमान
के लिए वहां जाता। यहां जस्मीन और उसके तथाकथित गुरुओं से एक सवाल है कि देशभर में
पांच वर्ष के बच्चों की संख्या करोडों में है, उनमें से कितने
बच्चों ने भूतकाल में या वर्तमानकाल में मासक्षमण की तपस्या की है? कितने नाम वे गिना सकते हैं? यह रेयर ऑफ रेयर केस में
ही संभव है। ठीक इसी प्रकार बालदीक्षा भी आम बात नहीं है। लेकिन, इन्होंने गुजरात उच्च न्यायालय में और अहमदाबाद की एम.एम. कोर्ट व सेशनकोर्ट
में जिस प्रकार की शर्मनाक व झूठी दलीलें दी है, उससे तो यही
लगता है कि जैनधर्म में धडल्ले से बालदीक्षाएं हो रही है और दीक्षार्थियों पर भयंकर
जुल्मोसितम ढहाए जा रहे हैं। धिक्कार है ऐसे लोगों को और ऐसे लोगों का पिष्टपोषण करनेवालों
को।
कितना प्रबल पुण्य होता है, पूर्वजन्म के संस्कार होते
हैं और वर्तमान निमित्त ऐसे मिलते हैं, ऐसे संस्कार मिलते हैं
तब बालदीक्षा या इतनी बडी तपश्चर्या संभव होती है? लेकिन धर्म
का सत्यानाश करने पर आमादा लोगों को यह कैसे समझ आएगा? उनका बस
चलता तो वे जरूर तपस्वी बालक के माता-पिता व गुरु को जेल में बिठाकर ही छोडते,
लेकिन उनके ही टुकडों पर पल रहे हों तो वे ऐसा कैसे करेंगे?
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